‘वैदिक साहित्य का इतिहास’ नामक पुस्तक को विद्वानों तथा विद्यार्थियों के समक्ष रखते हुए मुझे अत्यधिक हर्ष का अनुभव हो रहा है। इस पुस्तक को लिखने में लेखक ने अच्छा परिश्रम किया है। वैदिक साहित्य के इतिहास में इस तरह के अध्ययन की आवश्यकता थी। प्राचीन पद्धति से वैदिक वाङ्मय का ज्ञान प्राप्त करके और आधुनिक विश्लेषणात्मक शैली को अपनाकर इन्होंने इस पुस्तक को लिखा है।
यद्यपि इस विषय पर हिंन्दी तथा अँग्रेजी में अनेक पुस्तकें उपलब्ध हैं। फिर भी इस पुस्तक की एक अपनी अलग ही विशेषता है। अंग्रेजी लेखकों के द्वारा लिखी गई पुस्तकों में प्रायः भारतीय विद्वानों के मतों को स्थान नहीं दिया गया है। भारतीय विद्वानों द्वारा रचित इतिहास ग्रन्थों में भी प्रायः अंग्रेजी विद्वानों के मतों की ही दुबारा स्थापना की गई है। इस प्रकार ये ग्रन्थ एक ही दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हैं।
डॉ० कुँवरलाल जैन ने भारतीय एवं पाश्चात्य विद्वानों के मतों का सारगर्भित विवेचन करने के साथ प्रथम बार पुरातन भारतीय ऐतिह्य को उपस्थित करने का सुन्दर प्रयास किया है।
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