Trik Bhav Aur Chandrama
Publication: Alpha Publication
प्रस्तुत पुस्तक चन्द्रमा की षष्ठ-अष्टम व द्वादश भावों में स्थिति को ध्यान में रखकर लिखी गई है। भारतीय ज्योतिष शास्त्र में लग्न को शरीर सूर्य को आत्मा तथा चन्द्रमा को मन का कारक कहा गया है। इसका वर्णन ”चन्द्रमा मनसो जातस्चक्षो सूर्यो अजायत। श्रोत्राद्वायुश्च प्राणश्च मुखादग्निजायत।।” पुरुष सूक्त के इस श्लोक की पंक्ति में भी मिलता है। चन्द्रमा मन क्टई तरह ही एक अति संवेदनशील ग्रह ही जिस तरह से मन किसी भी आघात से पीड़ित हो जाता है, उसी तरह मन रूपी चन्द्रमा पर पाप ग्रहों का कुप्रभाव उसे पीड़ित कर देता है।
जिस प्रकार से मन की कल्पनाएँ भौतिकरूपी आकाश में उड़ान भरती हैं तथा दूसरे ही पल जमीन सूँघने को विवश हो जाती हैं उसी प्रकार से चन्द्रमा दिन-प्रतिदिन बढ़ते हुए अपने पूरे यौवन पर पहुँच कर दूसरे ही दिन से यौवन को दिन-प्रतिदिन क्षीण होते देखता रह जाता है। यहाँ पर ‘जीवन से मृत्यु की ओर’ का सिद्धांत स्पष्ट रूप से लागू होते हुए देख सकते हैं। चन्द्रमा की त्रिक भावों में स्थिति का फल निम्न प्रकार से कहा गया है:-











 
     
     
     
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