वर्षफल बोधक ताजिक ग्रन्थों में “नीलकण्ठी” सर्वश्रेष्ट सिद्ध है। जिससे सब प्रान्तों में इसका प्रचुर प्रचार और राजकीय संस्कृत परीक्षा के पाठ्य ग्रन्थों में निर्धा रित है। वर्तमान समय में प्रायः दैवज्ञ श्रीविश्वनाथ कृत संस्कृत टीका के आधार पर ही लोग इसका पठन-पाठन करते हैं। कुछ लोग तो तदनुसार ही ग्रन्ध संग्रह करके ग्रन्थकार भी बन बैठे । और कितने टीकाकारों ने उसी प्रकार भापा टोकाएँ भी लिखी हैं। परञ्च श्रीविश्वनाथ की टीका कहाँ युक्ति-सङ्गत और कहाँ असङ्गत हैं ? प्रायः इस पर किसी ने ध्यान ही नहीं दिया। “प्राचीनों ने जो कुछ कहा वे सब ठीक ही हैं, और नवीन जो कुछ कहे वे सब गलत ही हैं ऐसा नहीं होता, इसलिये विज्ञजन परिक्षा (जाँच) करके तथ्य का ग्रहण और अतथ्य का त्याग करते हैं, किन्तु मूढनन दूसरों का कहा ही ठीक मान लेते हैं। कहा भी है “पुराणमित्येव न साधु सर्व तथा न काव्यं नयमित्यवद्यन । सन्तः परीक्ष्यान्यतरद् भजन्ते मूढः परपत्ययनेयबुद्धिः ।” इसलिये युक्त और अयुक्त का विचार करना मनुष्ण का कर्तव्य है ।
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