उन प्रेरक रघुवंश विभूषण श्री रघुनाथ जी एवं श्री सङ्कटमोचन हनुमान जी की असीम अनुकम्पा से श्रीमद् भागवत रस पिपासुओं तथा श्रीमद् भागवत कथा वक्ताओं के हितार्थ यह अनुपम सङ्कलन “श्रीमद् भागवत प्रवचन-पीयूष” आपके समक्ष प्रस्तुत करते हुए अत्यन्त हर्ष का अनुभव कर रहा हूँ।
इस पीयूष के अन्तर्गत श्री बिन्दु जी महाराज, श्री शरणानन्द जी, साध्वी ऋतम्भरा दीदी जी और श्रीराम प्रपन्नाचार्यजी आदि अनेक विद्वानों के अमृतमय उपदेशों और अनुभवों का यथास्थान प्रसंगवश समावेश करके यह प्रयास किया गया है कि श्रीमद् भागवत कथा के प्रवचन हेतु कथावस्तु इसी सङ्कलन में उपलब्ध हो सके।
श्रीमद् भागवत का जन-मानस के हृदयों पर अत्यन्त प्रभाव का कारण है कि जब श्री कृष्ण इस धराधाम को त्याग करके गौ लोक संवरण को उद्यत हुए तब उद्धव जी ने पूछा- हे प्रभो! आपके चले जाने पर इस घोर कलियुग में प्राणी अपना जीवन यापन कैसे कर पायेंगे? उद्धव जी का मंतव्य समझकर भगवान ने अपना एक रूप श्रीमद् भागवत में स्थापित कर दिया और कहा कि- हे उद्धव जी! जहाँ पर यह श्रीमद् भागवत रहेगी वहाँ पर मेरी उपस्थिति अवश्य रहेगी। ऐसे सत्-चित्-आनन्दस्वरूप विश्व की उत्पत्ति, पालन और संहार हेतु और दैहिक, दैनिक व भौतिक तीनों तापों को मिटानेवाले श्रीकृष्ण को नमस्कार करते हैं।
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