राखिये जो मुखमें जन्मनक्षत्र परे तो हानि करे, वामहस्त रोग हृदय लक्ष्मी, ललाटे राजपद, दक्षिणहस्ते लाभ, चरणनमें भ्रमावै, नेत्रमें सुख, गुदामें मृत्यु, कांखमें परै तो शोक करें, तिस निमित्त जप दान पूजा ब्राह्मण भोजनादि कल्याण सुख होय अरु अनेक वाहनादि विचारको भी फल होते हैं सो अन्य ग्रंथन विषे कह्यो है ।। ३७ ।। ३८ ।। ३९ ।। ४० ।। ४१ ।। ४२ ।।
इति शनिफलचक्रम् ।
मेषेशनौगुर्जरेषुप्रभासेचार्बुदेवृषे ॥ मिथुनेजायतेपीडास्थले मूलस्थलेषुच ॥ ४३ ॥ ककै काश्मीर के बाधा शक्रप्रस्थेमृगाधिपे ।। शनैश्चरेचकन्यायांमालवाख्येचसंक्षयम् ॥ ४४ ॥ तुला वृश्चिकचापेषुयदियातिशनैश्चरः ॥ नवर्षेतितदामेघाः पृथ्वीदुर्भिक्षपीडिता ॥४५॥ सुभिक्षम करे कुंभेजायतेबहुधाशनौ ॥ मीनेचसर्वलोकानांदुर्भिक्षतुक्षयोभवेत् ॥ ४६ ॥
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