किन्तु इतिहास के संदर्शन, अतीत के अवगाहन तथा वर्तमान के विवेचन से इस सत्य का साक्षात्कार होता है कि विषमता-शत्रुता विरहित समाज मंगलकामी महामनुष्यों के मार्मिक मस्तिष्क में ही सुरक्षित है। अभी तक वह यथार्थ की वसुधा पर अवतरित नहीं हुआ है। प्रकृति के रहस्य यह स्पष्ट करते हैं कि समस्त सृष्टि असम्भवों की सम्भावना एवं विरुद्धों का समुच्चय है। निरन्तर सकारात्मक तथा नकारात्मक शक्तियों का तुमुल द्वन्द्व सक्रिय है। आलोक एवं तिमिर की भाँति ममता-निर्ममता, समता-विषमता, तृप्ति-तृषा, सरसता-विरसता, मधुरता-विधुरता, राग-विराग, वसन्त-पत्रान्त एवं शत्रुता-मित्रता का अभिन्न संयोग पग-पग पर उपलब्ध होता है। मनुष्य क्रोध तथा करुणा के सन्धिबिन्दु पर अवस्थित एक नैसर्गिक विस्मय के अतिरिक्त और क्या है। इस सनातन सूत्र का काव्यात्मक भाष्य गोस्वामी तुलसीदास के इन शब्दों में प्राप्त है
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