Shani Sahita
Publication: Alpha Publication
शनि शक्ति के संत्रास तथा त्रासदी से आतंकित व्यथित पीड़ित भयाक्रान्त मानव की विपुल वेना विपत्ति विकृति विनाश व्याधि विषमता विघटन विसंगतिपूर्ण विपरीत स्थितियों परिस्थियों के अवांछित अनापेक्षित अनावश्यक सम्भावनाओं के विषैले दंश और कँटीले पथ की पीड़ा प्रदायक चुभन के अन्तरंग आभास के अवलोकन और अवगाहन करने के उपरान्त पापाक्रान्त शनि की साढ़ेसाती अष्टम शनि और शनि की लघु कल्याणी ढैया आदि से संतप्त जीवन को विमुक्त करने के निमित ‘शनि संहिता’ का प्रसादामृत प्रबुद्ध ज्योतिष प्रेमियों के समक्ष प्रस्तुत है, जिसमें सन्निहित अनुभूत अद्भुत अमोघ एवं दुर्लभ साधना परिहार परिज्ञान सम्पादन विधान एवं सुगम साधना प्रावधान का अवलोकन अध्ययन अनुसरण और अभ्यास शनि संतप्त जातक-जातिकाओं के जीवन को अलौकिक आलोक से आनन्दित और आह्लादित करने हेतु नैमित्तिक साधनाओं का परम पावन प्रांजल पीयूष है।
‘शनि संहिता’ उन सशक्त शाश्वत संकल्पों का सुरभित सेतु है, जिसकी संरचना शनि ग्रह सन्दर्भित परिहार परिज्ञान शास्त्रसंगत सधन सामग्री के अभाव में अंकुरित और प्रस्फुटित हुई है। ‘शनि संहिता’ अभीष्ट संसिद्धि के संसुप्त संज्ञान की जागृति का अभिनव अनुसंधान है जिसमें शनि सन्दर्भित अन्याय अरिष्टों अनिष्टों अवरोधों अप्रत्याशित आतंक विविध व्यथाओं विपत्ति प्रदायक व्याधियोंसे आक्रान्त जातक-जातिकाओं के दुर्दमनीय दारूण दु:खों और दुर्गति का शास्त्रानुमोदित सुगम समाधान तथा अनुकूल विधान अखण्डित आस्थाओं को अविचलित आधार प्रदान कर देने वाले परिहार परिज्ञान, दुर्लभ स्तोत्र तथा साधनाएँ, मंत्र प्रयोग और साधना विधान शनि दान: दिव्य अनुष्ठान के अतिरिक्त शताधिक सुगम सांकेतिक साधनाएँ और उनके प्रतिपादन के विधिविधान आदि अट्ठाइस अध्यायों में सुरूचिपूर्ण स्वरूप में सुव्यवस्थित किए गए हैं। ‘शनि संहिता’ के परिशिष्ट में ‘दस महाविद्या स्तोत्र’ ‘कर्मज व्याधिनाशन ऋग्वेदीय मन्त्र’ ‘सुदर्शन चक्र मन्त्र साधना’ तथा ‘मृत्युंजय मन्त्र: विविध प्रकार’ के समीचीन समायोजन ने इस कृति की उपयोगिता एवं महत्त्ता में वृद्धि की है। ‘शनि संहिता’ समस्त जागरूक ज्योतिष प्रेमियों के लिए अनुकरणीय, संग्रहणीय और सराहनीय शोध प्रबन्ध है।
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