Satya Jatakam
Publication: Alpha Publication
यहाँ भाव तथा ग्रह की शुभता व क्षमता जानने के लिए पंच सिद्धान्त की कसौटी का उपयोग हुआ है। पंच सिद्धान्त में शुभ व अशुभ भाव, नैसर्गिक शुभ या पाप ग्रह, ग्रहों की परस्पर मैत्री व ग्रहों की शुभ व अशुभ नक्षत्रों में स्थिति के परिणाम पर चर्चा हुई है। श्री अमृतलाल जैन व उनके पुत्र श्री देवेन्द्र जैन ने अपने कार्यदल के सहयोग से इस कृति की रूप-सज्जा की, पांडुलिपि-शोधन के कठिन व महत्त्वपूर्ण कार्य को सफलतापूर्वक सम्पन्न किया-अपनी निष्ठा व धैर्य के लिए निश्चय ही वे प्रशंसा के पात्र हैं। धरती व आकाश को नापने वाला जो काल का नियामक है और सबका रक्षक भी, वह सभी की रक्षा करे, सबको स्वास्थ्य व सुख प्रदान करे, इसी कामना के साथ।
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