Satpancasika
यदि पृष्ठोदय लग्न को पाप ग्रह देखते हों तो असफलता, हानि, अशान्ति व अशुभ अर्थ की पुष्टि हो जाती है। यह योग प्रायः सर्वत्र प्रश्न का नकारात्मक उत्तर ही देगा। इस स्थिति में असफलता व अशुभ होगा ही। यदि प्रवासी के विषय में प्रश्न हो अर्थात् दैवज्ञ से यह पूछा जाए कि बहुत दिनों से हमारा व्यक्ति परदेश गया है, लेकिन उसकी खोज खबर नहीं मिली है, तब उक्त योग में कहा जाएगा कि प्रवासी बहुत कष्ट में है।
वह आने में असमर्थ है। या तो शत्रु की कैद में है अथवा किसी भी प्रकार के बन्धन (रुकावट) में है। यदि बहुत से पाप ग्रह लग्न को देख रहे हों, शुभ दृष्टि बिल्कुल न हो तो कहना चाहिए कि प्रवासी मरणासन्न है। श्लोक में प्रयुक्त ‘वध-बन्धन’ शब्द का तात्पर्य ताड़न, पिटाई, रुकावट, कैद, फँसना आदि से है। यहाँ वध शब्द का अर्थ मृत्यु से नहीं है। ‘पृष्ठोदये पापनिरीक्षिते वा’ का यही उक्त रहस्य है। इस पंक्ति में ‘वा’ शब्द का अर्थ ‘और’ है। अर्थात् ‘पृष्ठोदय लग्न हो और पाप दृष्टि हो’ ऐसा अर्थसंगत होगा। यदि साथ ही शुभ दृष्टि भी हो तो वध-बन्धन की भीषणता अनुपापततः कम होगी।
Reviews
There are no reviews yet.