प्रथम श्री जगत्कर्त्ता ईश्वरको समणाम धन्यवाद है कि जिसने श्री गुरुरूप धारण कर मुझ माकृत मनुष्य के कुण्ठित हृदय में किञ्चिन्मात्र श्रुतिषडंगान्तर्गत ज्योतिषफलादेश का बीजारोपण किया जो क्रमशः अंकुरित पल्लवित पुष्पित होकर फलितस्कन्धमें फलित हो रहा है, ज्योतिष के तोन स्कन्धों में तात्पर्य प्रत्यक्षफलबेोधक गणिता नुकूल होरास्कन्ध ही है जिसके विशेष प्रचार एवं सर्व साधारणके उपकारार्थ में बहुत काल से निज स्वामी श्री १०८ मन्महा- राजाधिराज केदारखण्ड जिला गढ़वाल टिहरीनरेश कीर्तिशाह देव के, सी, यस, आई की रक्षा में धर्माधिकारी पदपर रहकर ज्योतिषफलादेश के प्रचार में तत्पर हूं
मेरा परिश्रम भी गोब्राह्मण प्रतिपालक सेठ खेमराज श्री कृष्णदास जी की सहायता से बराबर सफल होता भाया है उन्होंके अनुमोदन से मैंने इस समय सर्वार्थचिन्तामणि नामक जातक फलादेशग्रन्थकी भाषा टीका निर्माण की है क्योंकि यह ग्रन्थ बहुत मामाणिक एवं सब का मान्य है, सब ज्योतिषज्ञ इसका समादर करते हैं परन्तु अब तक टीका टिप्पणी इसमें न थी और जो जातकांतर “बृहज्जातक, भावकुतूहल, जातक शिरोमणि, नीलकण्ठी” आदि मेरे भाषाटी- का सहित उक्त सेठ जी ने छापे हैं उनमें एक से एक गुण विशेष हैं तो भी उनकी अपेक्षा कितने ही विचार विशेष इसमें अन्य ढंगके होने से तथा गूढ एवं विशेष स्थल फलादेश विचारों में होने से उनका सारांश विशेष विद्वान्ही जान सकते हैं।
सर्वसाधारण इससे लाभ नहीं उठा सकते और फलादेशके उपयोगी चमत्कारिक फल इसमें बहुत ही विशेषता से हैं जिनके जानने से थोडा ज्योतिष जानने वाले भी विशेष चमत्कार फल कह सकते हैं जन्मपत्री आदिकोंमें भी प्रत्यक्ष मिळने योग्य फंक लिख सकते हैं इसलिये सरलता के हेतु मैंने यथामति इसकी भाषा टीका रची है, जहां कहीं त्रुटि, ममाद, वा भूल हो गई हो विद्वज्जन क्षमा करके परिशोधन करते हैं और मेरे परिश्रम पर ध्यान देकर प्रसन्नहों ।
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