विश्व की शाश्वतता का सत्य, संतति-जनन की निरन्तरता में ही सन्निहित है। इस अलौकिक यथार्थ से समस्त विश्व परिचित है। वात्सल्य आकांक्षा मातृत्व और पितृत्व के समस्त संभव सुखों को सम्पूर्णता प्रदान करती है। प्रत्येक मानव की अंतरंग अभिलाषा प्रसाद में रूपान्तरित हो ही जाये, यह अनिवार्य नहीं है। संतति सुख का अभाव विपन्न व्यक्ति को भी उतना ही व्यथित करता है, जितना कि किसी विराट सम्राट को । ज्योतिष विज्ञान के अध्ययन, अनुभूति और अनुसंधान ने हमें यह स्वीकार करने के लिए विवश किया है कि पूर्वजन्म के कतिपय अवांछित कर्म, अपराध अथवा पापकृत्य या शाप ही संततिहीनता का मूलभूत आधार है।
संततिसुख प्राप्त करने हेतु सर्वप्रथम अनिवार्यता है पाप के प्रायश्चित की, शाप मुक्ति की तथा दुष्ट कृत्यों और अपराध के कारण निर्मित होने वाले अवरोध को निर्विरोध में रूपान्तरित करने की, ताकि संततिहीनता का संताप और संत्रास मधुमास में परिवर्तित होकर वंशज की उत्पत्ति की गरिमा को गौरव प्रदान करके जीवन की सार्थकता और सम्पूर्णता प्रारूपित करने के साथ-साथ दाम्पत्य जीवन की नीरसता को संतान के अलौकिक आनन्द से आलोकित करे । माता-पिता कहकर बुलाने वाले सुमधुर स्वर से मनआँगन और जीवन के हर अंश को अद्भुत आनन्द से अभिपूरित, अभिरंजित और अभिगुंजित करे, मन के साथ-साथ घर का आँगन और हवाएँ भी नाच उठें।
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