Purva Kalamrita
मैं ग्रन्थकार (कालिदास) अपने कुलदेव या इष्टदेव श्री वेंकटेश्वर भगवान् (विष्णु) को नमस्कार करके, सब कामनाओं को पूर्ण करने वाले, ज्योतिःशास्त्ररूपी सागर को मथकर प्राप्त किए गए साररूप अर्थ को प्रकट करने वाले, सभी विद्वानों के मन को मोहित करने में समर्थ, कोमल कान्त पदों का प्रयोग करते हुए, संक्षेप विधि से, लेकिन स्पष्टबोध कराने वाले पूर्व कालामृत नामक ग्रन्थ को कहता हूं।
प्रस्तुत ग्रन्थ में गर्भाधान से प्रारम्भ करके जीवनोपयोगी प्रायः सभी मुहूर्त सम्बन्धी जिज्ञासाओं को शान्त करने वाले विषयों का समावेश किया गया है। यह काल (मुहूर्त्त) रूपी अमृत (कालामृत) जिज्ञासुओं के लिए सर्वथा स्पष्ट विषयार्थ बोधक सिद्ध होगा। अर्थात् इसे पढ़कर मुहूर्त सम्बन्धी सभी जिज्ञासाएं अवश्य शान्त होंगीं। ग्रन्थकार ने अपने उत्तरकालामृत में इस पूर्वकालामृत नामक अपनी रचना का उल्लेख किया है।
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