मान्यता नई नहीं है। वैदिककाल से ही पितरों की पूजा-अर्चना और यज्ञ की परम्परा रही है। वैदिक युग के पश्चात् पौराणिक काल में पितरों की उपासना की परम्परा बढ़ी है और इससे सम्बन्धित नये तथ्य हिन्दू संस्कृति में समावेशित हुए हैं। जब हम पितरों के अस्तित्व को स्वीकार करते हैं, तो ऐसी स्थिति में पितृदोष कोरी कल्पना कैसे हो सकता है? पितृदोष से तात्पर्य होता है, पितरों की असन्तुष्टि से अर्थात् पितर असन्तुष्ट और अप्रसन्न होंगे, तो अपने परिजनों को कष्ट एवं पीड़ा देंगे अथवा उनके अहित की परिस्थितियां निर्मित करेंगे, यही पितृदोष है।
पितृदोष क्यों होता है, इससे क्या नुकसान हो सकता है, पितृदोष निवारण हेतु किस प्रकार के उपाय करने चाहिये, ऐसे प्रश्नों के उत्तर इस पुस्तक में आपको मिलेंगे। पितृदोष और इसके प्रभाव को स्पष्ट करने के लिये अनेक उदाहरण बताये गये हैं, जो किसी न किसी रूप से लोगों की परेशानी का कारण बने हुए थे। इन कारणों को पढ़ लेने के बाद आपको स्पष्ट हो जायेगा कि आखिर पितृदोष इतना कष्टकारक क्यों होता है
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