Pav Tale Bhavishya
क्या हाथ के रेखाओं की तरह पादतल या पाँव की रेखाओं के माध्यम से – मानव का भूत-भविष्य जाना जा सकता है ? यदि हां तो पांव के तलवे व उसकी रेखाओं द्वारा भविष्य कथन की परम्परा कब से प्रारम्भ हुई ? सर्वप्रथम पांव की रेखाओं का प्रामाणिक उल्लेख कहां, कौन-से ग्रंथ में मिलता है ? और फिर पांव की रेखाओं के माध्यम से भविष्य कथन प्रणाली ने सार्वजनिक प्रचलन व प्रसिद्धि को क्यों नहीं प्राप्त किया? ये सभी प्रश्न एक बुद्धिजीवी व प्रबुद्ध जिज्ञासु के मस्तिष्क में एक साथ सहज रूप से उठने स्वाभाविक हैं तथा इन प्रश्नों का सटीक व सामयिक समाधान अनिवार्य रूप से सर्वजनहिताय अपेक्षित भी है।
सामुद्रिक शास्त्र में यह एक आश्चर्यजनक घटना है कि जिसमें विभिन्न अंगों का सूक्ष्मता से अध्ययन तो हुआ परन्तु पाद- रेखाएं पैरों तले कुचली की कुचली ही रह गयीं। पादतल व पाद-रेखाओं को लेकर अलग से कोई रचना, साहित्य या ग्रन्थ अब तक प्रकाश में नहीं आया। यदि कह दिया जाये कि पिछले हजारों वर्ष के अन्तराल के पश्चात् राष्ट्र भाषा हिन्दी की यह पहली कलम है जो इस विषय पर कुछ श्रमपूर्वक लिखने का प्रयास कर रही है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
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