इस ग्रन्थ का मूल उद्देश्य युवा पाठकों को यह बताना है कि होरा शास्त्र का निकास किस प्रकार वेद से हुआ है। होरा का विषय जातक के प्रारब्ध कर्म का पाक समय बताना है जिसकी दो विधा दशा और गोचर हैं। इस काल की गणना को ब्रह्माण्ड के घटी यंत्र – नक्षत्र मंडल और सूर्य , चंद्र का उस मंडल पर परिशभ्रमण दर्शाता है। जिसका विवरण वैदिक संदर्भ सहित दिया है। ग्रह कर्म फल के सूचक हैं जिनकी उपासना परक वैदिक ऋचाओं को प्रतीकात्मक रूप से ग्रहों का गुण, स्वाभाव (कारकत्व) माना है। कर्म-फल-सुखदायक व दुखद घटनाओं को भाव रूपी चित्रपट (माध्यम) से कहा है। भावों को भी प्रतीकात्मक रूप से ब्रह्मसूत्रों से लिया है।












































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