संसार की उत्पति, स्थिति और प्रलय सभी ग्रहों के अधीन है। समस्त संसार ग्रहों के अधीन है। इसी लिये समस्त पुराणों में ऋषियों में सुयार्दि ग्रहों को ही जन्म पालन और मरण का कारण बतलाया है। महार्षि विशिष्ट कहते हैं समस्त उच्चारण प्राणियों की उत्पत्ति, आकाश में विद्यमान उच्चारण ग्रहों की किरणों के कारण ही होती हैं। उनमें सूर्य और चन्द्र के बलानुसार पुरुष / स्त्री की उत्पत्ति होती है। जैसे गर्भाधान के समय जब किसी जातक का सूर्य बलवान होता है, तो पुरूष का जन्म होता है और जब चन्द्र बलवान होता है तो स्त्री (कन्या) का जन्म होता है। इनका शुभ अशुभ सूर्य और चन्द्र के शुभ/अशुभ के अनुसार ही होता है। यह बात वैज्ञानिक दृष्टि से सिद्ध हो चुकी है कि कर्म का फल अवश्य होता है उसी के अनुसार फल प्राप्त होता है। प्रायः देखा गया है कि कुछ लोग सारा दिन काम करते हैं फिर भी उन्हें पेट भरने के लिये उपयुक्त सामान प्राप्त नहीं होता, और कुछ लोग कुछ भी नहीं करते फिर भी वे हर दृष्टि से सम्पन्न होते हैं। ऐसा भी देखने में आया है कि एक ही लग्न में, एक ही नक्षत्र में, उत्पन्न जुड़वां बच्चों का स्वभाव, कर्म, भाग्य अलग अलग होता है। एक राजा बन जाता है तो दूसरा भिखारी। यह कमों के अनुसार ही हमें प्राप्त होता है। इसी का नाम भाग्य है। यही कर्म गति है। अपने कर्मों द्वारा और नीच ग्रहों के उपायों द्वारा हम अपना यह लोक और परलोक सुधार सकते हैं क्योंकि कर्मों का फल अवश्य प्राप्त होता है। उपाय भी तो कर्म ही हैं।
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