Muhurta Kalpadrum
अनाथबन्धुं गणनाथमन्तश्चित्ते निवेश्य क्षपितान्तरायम् । प्राचीन वाक्यानि विचार्य सम्यक् मुहूर्तकल्पद्रुममारभेऽहम् ।।1।। ‘अपने हृदय में अनाथ दीनहीन जनों के परम सहायक भगवान् गणनाथ (श्रीगणेश) को स्थापित करता हूँ, जिससे समस्त विघ्न बाधाएँ मेरे कार्य प्रवाह के मार्ग से दूर रह सकें।
अपि च प्राचीन ग्रन्थों के वचनों को अच्छी प्रकार से विचार कर, समझ कर और उनका रहस्य जानकर मैं (ग्रन्थकार विठ्ठल दीक्षित) इस मुहूर्तकल्पद्रुम नामक ग्रन्थ की रचना प्रक्रिया को प्रारम्भ करता हूँ।’
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