Maheshwar Tantra
यह लघुकृति ‘माहेश्वर-तन्त्र’ तन्त्रशास्त्र के प्रमुख प्रमुख प्रयोगों को प्रस्तुत करने वाला भगवान् त्र्यम्बकेश्वर शिव की कृपा से प्राप्त ग्रन्थ है। इसमें लिखे अनुसार त्र्यम्बकेश्वर (नासिक महाराष्ट्र के निकटवर्ती प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंगस्थ पीठ) में निवास कर तप-साधना करने वाले महात्मा ‘शिवगिरि’ को भगवान् शिव ने उनकी प्रार्थना पर प्रसन्न होकर इसे सुनाया था।
इस ग्रन्थ में बताया गया है कि ‘उक्त महात्मा संन्यासियों में – शिरोमणि थे, अनेक तन्त्र-क्रियाओं की साधना में निपुण थे, किन्तु कुछ क्रियाओं में उनको सिद्धि नहीं मिल रही थी, इससे वे दुःखित होकर भगवान् शिव के मन्दिर में जाकर अनशन करके बैठ गये। भक्त की हठ-भक्ति से प्रसन्न होकर दयालु भगवान् शिव ने स्वप्न में दर्शन दिया और उत्तमोत्तम सिद्धिप्रद प्रयोग बतलाये। उन प्रयोगों की सिद्धि से उनका बड़ा प्रभाव फैल गया।’
इधर उन्हीं दिनों जयपुर (राजस्थान) के निकटस्थ ‘धोला’ गांव के निवासी पं. भवानीप्रसाद जी के पौत्र तथा पं. राजकुमार जी के पुत्र पं. लक्ष्मीनारायण जी गौड़ यात्रा के प्रसंग में त्र्यम्बकेश्वर गये और वहां उन महात्मा जी की चारों ओर प्रशंसा सुनी। वे वहीं रुक गये और शिवगिरि जी महाराज की सेवा करने लगे। यथासमय उनकी कृपा हुई। उन्होंने मन्त्र-दीक्षा दी और अनेक तत्काल सिद्धि देने वाले उत्तम मन्त्रों और प्रयोगों का उपदेश किया।
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