अब तक कर्मकाण्ड के विविध ग्रन्थों के रहते हुए भी कोई ऐसा ग्रन्थ नहीं था कि जिससे यज्ञ-यागादि में कुण्ड और मण्डपरचना की प्रक्रिया यथावत् ज्ञान हो सके । था भी तो अनेक बड़े-बड़े ग्रन्थों में कि जहाँ20 से खोज कर निकालना सर्वसाधारण के लिए दुस्तर था। मैं भी इसी विचार में पड़ा था कि यह कार्य कैसे सम्पन्न हो, इसी बीच श्री विठ्ठलदीक्षित-रचित कुण्डमण्डप-सिद्धि की यह हस्तलिखित प्रति हाथ लग गयी। इसमें भी एक कमी थी, वह यह कि सीधे-सादे कुछ पद्मों में सूत्र रूप से कुण्डमण्डप-रचना की पद्धति समाविष्ट थी । इसी को आधार मान कर मैंने इसकी टीका की, उदाहरण लिख दिये और आवश्यक कुण्डों का चित्र भी लगा कर मैंने जिस-किसी तरह यह समस्या सुलझायी ।
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