Karviryopaasan paddhati
मानव जीवन में उपासना का प्रमुख स्थान है। प्रत्येक धर्मावलम्बी व्यक्ति अपने भावनानुसार किसी न किसी इष्ट देवता का उपासना-आराधना करता है। थोड़े-बहुत जितने समय के लिए हो, परन्तु करता है अवश्य, चाहे वह जिस रूप में हो। श्रद्धा-भक्ति पूर्वक प्रति-दिन नित्यकर्म, देव-पूजन एवं देवाराधन करने वाले मनुष्य की बुद्धि में सद्विचार, सद्धर्म एवं सद्विवेक का उदय होता है। इससे मनःशान्ति के साथ मनुष्य को परमानन्द की अनुभूति होने लगती है। जो मानव जीवन की परमोत्कृष्ट उपलब्धि है।
कार्तवीर्य को अर्जुन, कार्तवीर्यार्जुन, सहस्त्रार्जुन एवं हैहयाधिपति भी कहते हैं। कार्तवीर्य के पिता कृतवीर्य और माता का नाम शालधरा था।
ये हैहय देश के राजा थे एवं इनको राजधानी माहिष्मती (वर्तमान नाम ॐ कार मान्धाता) नगरी थी। अपनी साधना एवं देवाराधन के फलस्वरूप ये दत्तात्रेय से कई वर प्राप्त किये थे। जैसे, सहस्त्र भुजाएँ, स्वर्णमय रथ-जिसके द्वारा अपने इच्छानुसार आप जब जहाँ चाहे वहाँ जा सकते थे। आपने न्याय और धर्माचरण से अनिष्ट निवारण, दिग्विजय एवं शत्रुओं द्वारा अपराजेयता आदि की महती शक्ति प्राप्त की थी। वायुपुराण के अनुसार धर्म तथा न्यायपूर्वक आपने पच्चासी हजार वर्ष तक राज्य किये और दश हजार यज्ञ सम्पन्न किये थे। कई स्थानों पर इन्हें सम्राट् तथा चक्रवर्ती भी कहा गया है। महाराज कार्तवीर्य रावण के समकालीन थे। इन्होंने रावण को अपनी नगरी में एकबार बन्दी बना रखा था, परन्तु महर्षि पुलस्त्य की प्रार्थना पर छोड़ दिये।
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