दो शब्द
भारतीय स्टेट बैंक में अपने कार्यकाल में मेरा उत्तराखण्ड की अनेक स्टेट बैंक शाखाओं में जाना हुआ। ज्योतिष का विद्यार्थी होने के कारण मैं वहां ऐसे संस्कृत विद्यालयों में जाने का उत्सुक रहता था जहां ज्योतिष एक विषय के रूप में पढ़ाया जाता था। ज्योतिष के अनेक शिक्षकों से भेंट होने पर ज्योतिष विषय पर चर्चा होना स्वाभाविक था। अधिकांश ज्योतिष के शिक्षकों ने ‘जातकालंकार’ ग्रंथ की सटीकता तथा गागर में सागर होने के कारण इसको ज्योतिष का वास्तविक ‘अलंकार’ कहकर इस ग्रंथ की प्रशंसा की।
जातकालंकार के संस्कृत-हिन्दी रूप में उपलब्ध पुस्तकों की भाषा प्रायः क्लिष्ट है तथा उनमें व्यावहारिक कुण्डलियों का अभाव है। अंग्रेजी भाषा में उपलब्ध परम आदरणीय डॉ के एस ‘चरक’ जी की पुस्तक ‘Jatakalankara’ व्याख्या सहित हर दृष्टि से पूर्ण है। परन्तु अंग्रेजी भाषा का अल्प ज्ञान रखने वाले ज्योतिषी इस अनुपम ग्रंथ के लाभ से वंचित हैं। अतः मैंने डॉ. ‘चरक’ जी के समक्ष उनके इस अंग्रेजी ग्रंथ के हिन्दी रूपान्तर का प्रस्ताव रखा तो सदा की तरह उन्होंने ‘Jatakalankara’ के हिन्दी रूपान्तर की स्वीकृति देकर ज्योतिष शास्त्र के प्रति अपनी समर्पण भावना तथा प्रतिबद्धता का परिचय दिया जिसके लिए हिन्दी प्रेमी सभी ज्योतिषी सदैव उनके अनुगृहीत रहेंगे।
पुस्तक की भाषा को सरल तथा बोधगम्य बनाए रखने का प्रयास किया गया है। ईश्वर के समक्ष नतमस्तक होते हुए मैं अपने गुरुजनों, मित्रों एवं शुभचिंतकों का आभार प्रकट करता हूँ।
अन्त में सुधी पाठकों से अनुरोध है कि असावधानीवश हई त्रुटियों की वे जानकारी देने की कृपा करेंगे ताकि आगामी संस्करण में उनका निराकरण किया जा सके।
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