परमपिता परमेशवर ने इस सृष्टि की रचना कर इसके संचालन एवं व्यवस्था को बनाए रखने के लिए जब मनुष्य की रचना की तो साथ-ही-साथ रात-दिन और धूप-छांव की भांति उसके जीवन में सुख-दुःख की भी क्रमिक व्यवस्था कर दी। क्योंकि जीवन में कर्म करते समय समस्याओं की उत्पत्ति भी होती है। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में कोई न कोई समस्या आती ही रहती है। समस्याओं से मनुष्य कभी मुक्त नहीं होता। ये समस्याएं किसी भी प्रकार की हो सकती हैं। किसी व्यक्ति को धनाभाव की समस्या होती है, तो कोई व्यवसाय के न चल पाने के कारण अथवा व्यवसाय में होने वाली हानि की समस्या से जूझ रहा होता है। कभी-कभी व्यक्ति का गलत निर्णय भी समस्याओं को जन्म दे देता है।
दांपत्य-संबंधों में आने वाली समस्याएं भी व्यक्ति को परेशान रखती हैं, क्योंकि इसका प्रभाव पूरे पारिवारिक लोगों पर पड़ता है। इसी प्रकार विवाह आदि अनेक प्रकार की समस्याएं अधिकांशतः युवक तथा युवतियों को समान रूप से प्रभावित करती हैं।
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