मोगेश्वर श्रीकृष्ण महाराज साक्षात् भगवान होते हुए भी अर्जुन को अद्वैत का निरूपण या निराकरण इस प्रकार समझाते हैं कि जन साधारण की समझ में सहज ही आ जाय और बह, यह भली-भाँति समझ जाँय कि ईश्वर किस प्रकार सब भूत-प्राणियों में सम भाव से स्थित है उसका इस संसार में न कोई प्रिय है और न कोई अप्रिय ही है फिर भी प्रेम के वशीभूत उसकी प्रसन्नता और अप्रसन्नता का प्रत्यक्ष प्रमाण मनुष्य किस प्रकार देवी-देवताओं भूत-पिशाचों की पूजा करने पर प्राप्त कर लेते हैं।
येऽप्यन्यदेवताभक्ता यजन्ते श्रद्धयान्विताः । तेऽपि मामेव कौन्तेय यजन्त्यविधिपूर्वकम् ।।
सकामी भक्तों की अनेक प्रकार से की गई पूजा देवी-देवताओं द्वारा जो स्वीकार की जाती है जिसका फल भी शीघ्र ही प्राप्त हो जाता है सब प्रकार से मेरी ही पूजा होती है
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