विदित हो कि इस पुस्तकमें बहुतसे बालकोंके जन्मपत्रीके योग कहे है, पहली बार मृत्युकारक योग कहे हैं और फिर राजयोग धनिकयोग माता पिताके अरिष्ट और मृत्युयोग बहुतसे कहे हैं और इनके बीच बीच अरिष्टभंग योग भी झलका दिये हैं और चिरायुयोग भी कहे हैं और यह भी कहा है कि बालक अप पितासे उत्पन्न है वा अन्य किसी जातिसे है और बालकके विवाह वा संतान वा भाई कुटुंब इत्यादिक बहुतसे योग इसके विषे विद्यमान हैं. इस पुस्तक का और जन्मपत्रका योग पूरा मिलता है. यह पुस्तक पहले कहीं नहीं छपी थी हमने लोकहितार्थ ढाढोलिग्रामनिवासी पं. काशीरामसे भाषा कराके और बड़े परिश्रमसे शुद्ध करके छापा है. इसके मंगानेसे वह आनंद आता है कि एक हाथमें जन्मपत्र लीजिये दूसरे हाथमें दक्षिणा ग्रहण कीजिये और इसको थोडा सा पढा हुआ भी जन्मपत्रके फलको कह सकता है.
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