भारताय मनााषया म आत्मश्लाघा क अभाव के कारण स्वय क बार म अधिक जानकारी देने की परम्परा नहीं रही है; इसीलिये आचार्य वराहमिहिर ने भी स्वयं के जन्म के बारे में निश्चित तिथि का स्पष्ट उल्लेख नहीं किया है। इनके जन्मसमय को ४२७ शकाब्द माना जाता है, तद्नुसार यह ५०५ ईस्वी तथा संवत् ५६२ विक्रमी निश्चित किया जाता है; परन्तु बहुत से विद्वान् इस शकाब्द को आचार्य के ग्रन्थ ‘पञ्चसिद्धान्तिका’ का रचनासमय मानते हैं और उस समय आचार्यश्री की आयु अट्ठारह वर्ष मानकर शकाब्द ४०९ को उनका जन्मवर्ष मानते हैं। आचार्य ब्रह्मगुप्तरचित करणग्रन्थ ‘खण्डखाद्यक’ के सुप्रसिद्ध संस्कृत टीकाकार श्री आमराज के अनुसार आचार्य वराहमिहिर का निधन ५०९ (पाँच सौ नौ) शकाब्द में हुआ था। इस आधार पर आचार्यश्री शतायु को प्राप्त हुए थे। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है। श्री आमराज ने लिखा है-
नवाधिकपञ्चशतसंख्यशाके वराहमिहिराचार्यो दिवङ्गतः ।
इस प्रकार उनका जन्मवर्ष शकाब्द ४०९ (४८७ ई.), पञ्चसिद्धान्तिका का रचनाकाल शकाब्द ४२७ (५०५ ईस्वी) तथा निधन शकाब्द ५०९ (सन् ५८७ईस्वी) निर्विवाद है। यहाँ मैं अपनी ओर से कुछ न कहकर पञ्चसिद्धान्तिका के अंग्रेजी टीकाकार सुप्रसिद्ध जर्मन विद्वान् डॉ. जी. थिबो तथा डॉ. कार्न (बृहत्संहिता के आँग्ल टीकाकार) के मतों को उद्धृत कर रहा हूँ-
The view that 427 Saka is the year of Varah Mihira’s birth we may set aside without hesitation. Dr. Kern was led to that hypothesis partly by the consideration that the Pancha Siddhantika which in one place refers to Aryabhata’s views could hardly have been composed in 505 A.D. when Aryabhata born in 476 A.D. was only 29 years old. We now know from Dr. Kern’s edition of the Aryabhatiya that Aryabhata composed his work in 499 A.D. Already so that he might very well have been quoted in a book written in 505 A.D.
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