पं. राधाकृष्ण श्रीमाली ज्योतिष, तंत्र, मन्त्र और वास्तु के स्थापित हस्ताक्षर है ! अनेक दशकों में आपने देश को सैकड़ों पुस्तकें दी है! आपकी रचनाओं और खोजों के चलते ही आपको दर्जनों बार सम्मानित किया जा चूका है! वे सिर्फ कर्मकांडी नहीं है, बल्कि अनुभववाद पर भी भरोसा करते है! ‘षोडशी एवं भुवनेश्वरी तांत्रिक साधनाएं’ में इस साधना का रहस्य उजागर करते हुए पं . श्रीमाली नै कई महत्वपूर्ण विषयों को प्रामाणिक ढंग से निरूपित किया है! उनका मत है की वास्तु की सत्ता तभी तक है जब तक उस्मिन् शकी प्रतिष्ठित है! शक्ति सत्ता में कल्याण भाव को प्राप्त होता पदार्थ ‘शिव है! यह पुस्तक पं. श्रीमाली की खोज और अनुभाव का सम्मिश्रण है! इसलिए यह पुस्तक संग्रहणीय तो है ही आध्यात्मिक यात्रा के लिए जरुरी भी है!
मानव बुद्धि के विकास का इतिहास चार अलग युगों से होता हुआ पूर्णता तक पहुंचता है। हमारे तांत्रिकों ने वह पूर्णता प्राप्त की थी। दर्शन और तंत्र का संबंध बुद्धि विकास के अंतिम स्तर से है। वह साधक के उपलब्ध वैज्ञानिक ज्ञान से बहुत आगे है। बात से अनभिज्ञ होने के कारण मनुष्य ने तंत्र को पिछड़ा हुआ और समय से बहुत पीछे कहकर उसका उपहास किया। परिणामतः मानव विकास की गति कुंठित हो गई और आज वह अवरुद्ध होकर हंसी की वस्तु बनी दिखाई दे रही है
। भारत की प्राचीनतम व गूढ़ विद्या है तंत्र शास्त्र। भारतीय विद्वानों, देवज्ञों, ऋषि-महाऋषियों का मानना है कि तंत्र शारीरिक, दैहिक, भौतिक कृत-कर्तव्यों का पालन करते हुए आध्यात्मिक क्षेत्र में प्रगति कर सकने का एक सर्वोत्तम साधन है। धीरे-धीरे लोग कालांतर में इस शक्ति का, इस देव विद्या का, आध्यात्मिक शक्ति का दुरुपयोग करने लग गए, फलस्वरूप तंत्र बदनामी की डगर पर बढ़ने लगा। व्यक्ति दोष हावी हो गया। आज तंत्र के क्षेत्र में दो नाम प्रायः सुनने में आते हैं (1) कौल (2) वाम मार्ग। सर्वसाधारण में यह धारणा फैलती चली गई कि तंत्र का मंतव्य मांस- मदिरा-मैथुन आदि पंचमकार के उपयोग में लिप्त रहकर जीवन व्यतीत करना है। उन तथाकथित तांत्रिकों के व्याभिचार व कामुकतापूर्ण क्रिया-कलापों के अनेकानेक सच्चे-झूठे किस्से सुनने में आते हैं।
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