श्रीगणेशाय नमः । श्रुतिनेत्र ज्योतिषशास्त्र प्रत्यक्ष चम-त्कारी सद्यःप्रत्ययकारीकी महिमा जगद्विख्यातही है परंच वर्तमान समयमें कितने ही मतांतरीय लोग इसे तुच्छ एवं निरर्थक मानने लगे हैं, कारण यह है कि कलिकालमहिमा बढनेसे (देववाणी) संस्कृतभाषाका परिचय इंग्रेजी उदरंभर नवशिक्षितोंमें न्यून हो गया है जितने प्राचीन ग्रंथ ज्ञान-विज्ञानादिबोधक हैं समस्त उक्त भाषामेंही हैं यतः मूलवि द्याही यह है इसके अपरिचित लोगोंको कालमहिमा शीघ्रहां आक्रमण करती है नहीं तो इतनाभी स्मरण सर्व साधारणमें होही जाता कि भारतवर्षके आर्यजनोंके समस्त वर्णाश्रम धर्म जन्मादिसंस्कार भूत भविष्य कर्म फलज्ञान इष्टानिष्ट, हानि, लाभ, सुख, दुःख आदि समस्त कृत्योंमें क्या विना ज्योति-पशास्त्र काम चलता है? यदि नहीं है तब तो केवल नास्ति-कताही ठहरी आर्यजनोंके अतिरिक्त मुसलमान इंग्रेज आदि जन भी तौ इसे फलप्रकरणमें जानने मानने लगे हैं हमारा तो मूल शास्त्रही है. संस्कृत वाणीका अल्प प्रचार देख सर्व साधारणको ज्योतिषका चमत्कार विदित कराने के लिये एवं अल्पही परिश्रमसे ज्योतिषका फलादेश जनानेके हेतु भार-तवर्षेमें विख्यात ” लक्ष्मीवेङ्कटेश्वर ” यंत्रालयाधीश श्रीकृ-ष्णदासात्मज गंगाविष्णु अनेक ग्रंथोंका भाषांतर कराय प्रचार कर रहे हैं इन्ही महाशयोंकी आज्ञानुसार मैं पं०मही-धरशर्मा राजधानी टीिहरी जिला गढवालनिवासी चमत्कार-चिंतामणि नाम ग्रंथकी भाषाटीका करता हूँ जिसमें समस्त भाव फलमेंही फलादेश सर्व साधारण जान सकते हैं गणित एवं योगसंबंध आदि कठिन विचार कुछ नहीं केवल ग्रहकुं-डलीमात्र देखनेसे फलादेश ज्ञात हो जाता है जो मैंने बृह-ज्जातक नीलकंठी आदिकी भाषाटीका की है उनसे किंचि न्मात्र ज्योतिषका बोध होना आवश्यक है इसमें वहभी नहीं हिंदीभाषा मात्रके ज्ञाता इससे काम ले सकता है और भी पाठ-कोंके प्रसन्नार्थ युक्ति की गई है कि जो भावफल वैषयिक कुछ कुछ वार्ता विशेष है देभी ग्रंथांतके मत लेकर इसके प्रत्येक छोकके टीकामें शामिल जिव दिने हैं जिससे पाठकों को अन्य ग्रंथकी अपे । न रहे। अते महीधर शर्मा ।
Reviews
There are no reviews yet.