भृगु के नाम पर ऐसी भी पुस्तके प्रकाशित हो रही है जिनका भृगुकालीन होना संदेहास्पद है l ‘भृगु – नवनीतम’ तथा ‘भृगु – सूत्रम’ तथा ‘भृगु – संहितोक्त श्लोको’ को ही सम्मलित किया है क्योकि हजारो वर्षो से श्रुति- स्मृति के माध्यम से इन्ही दोनों का देशव्यापी प्रचार होता रहा है l संस्कृत के सूत्रों तथा श्लोको की बोधगम्य व्याख्या पाठको को उल्ल्सित करेगी l देश – काल – पात्र – परिवर्तन के आलोक में लेखक ने सूत्रों तथा श्लोको के सन्दर्भ में जो नया दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है उससे पाठक लाभान्वित होंगे l पुस्तक उपयोगी तथा स्वागत योग्य है l
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