व्यापार सफलतार्थ जैसे बुद्धिचातुर्य और देश, काल, परिस्थित्यादि के ज्ञान की आवश्यकता है वंसे ही तदुपयोगी ज्योतिः शास्त्रान्तर्गत अर्धकाण्ड के ज्ञान की भी परमावश्यकता है, क्योंकि जिस प्रकार ग्रहस्थिति द्वारा प्राणियों का सुख, दुःख, हानि, लाभ तथा भूत, भविष्य, वर्तमान काल का फल जाना जाता है उसी प्रकार ग्रहर्गात द्वारा सुभिक्ष, दुर्भिक्ष, समर्थ, महर्षादि व्यापार भविष्य भी चिरकाल पहले हो जाना जा सकता है। आजकल जैसे स्थानीय बाजारभाव पर राजकीय आदेश तथा समाचार पत्र, तार, रेडियो, टेलीफोन आदि साधनों द्वारा अन्य दूरदेशीय मंडियों के भाव का प्रभाव तुरन्त पड़ता है वैसे ही ग्रहों के राशिचार, नक्षत्रचार, युति उदयास्त ग्रहवेध, ग्रहण, क्षय, वृद्धि, अधिक मासादि एवं शकुन अर्थात् – किसी विशेष तिथि को बिजली, बादल, वर्षा, वायु उत्पातादि का प्रभाव व्यापारिक वस्तुओं पर तेजी मन्दी के रूप में पड़े बिना नहीं रह सकता।
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