जो स्वंसग परित्याग कर वन का समाश्रय ले चुके है, ऐसे रागद्वे य-मूत्य, निप्परिग्रह मूनिजन-सत-महात्मा भी ज्योतिष चञास्त्र वेत्ताओ से भविष्य ज्ञात करने के लिये उत्सुक रहते है, तव स्लाधारण ससारी प्राणी की तो चर्चा ही क्या ?
प्रायः इस भविष्य ज्ञानकी प्राप्तिज्योतिष झास्त्र के द्वारा होती है। ज्योतिप भास्त्र अथाह सागर है। जन्म-कुण्डली निर्माण के लिये, जन्म का स्थान, ठीक समय का ज्ञान आदि परमावश्यक है। शुद्ध रमन, भाव-स्पष्ट, ग्रह स्पष्ट, मान्दि स्पष्ट, मित्रामित्रचक्र, सप्तवर्गी चक्र, दशवर्य, दशा, अन्तर्दंभा, अष्टक वर्ग, सर्वाष्टक वर्ग आदि बचाने में बहुत गणित करना पडता है, और परिश्रम साध्य है। फलादेश में भी अनेक विचारों का सामड्जस्यथ करना पडता है। वृहत् ज्योतिष शास्त्र की परिक्रमा लगाना वसा हीं कठिन है जंसा पृथ्वी की परिक्रमा लगाना ।
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