Mahamrityunjaya
जैसे-जैसे जन-मानस में जिज्ञासा जागती है वैसे ही बोध की दिशा में चरण आगे बढ़ते जाते हैं । आज के युग में जो एक प्रकार की व्याकुलता सभी मानवों में पूर्णतया व्याप्त है, वह है स्वस्थ जीवन की। क्योंकि पग-पग पर फिलसते जीवन में और सब तो जो होना है, होता ही है, किन्तु फिसलकर पुनः खड़े होने की शक्ति यदि नहीं रहे तो जीना ही व्यर्थ हो जाता है। इसीलिए तो महाकवि कालिदास ने कहा है- ‘शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्’ समस्त सांसारिक धर्म-कर्म-साधनों का मूल शरीर है। ‘जान है तो जहान है’ यह बहुत महत्त्व की बात है ।
हम जिन बाहरी उपायों से अपनी सुरक्षा चाहते हैं उनकी स्थिति द्रौपदी के चीर की तरह निरन्तर बढ़ती रहती है। प्रतिदिन हम देखते हैं कि उस व्यक्ति ने अपने रोग का उपचार छोटे-से चिकित्सालय से आरम्भ कर क्रमशः देश के और विदेश के बड़े-से-बड़े हॉस्पिटलों में करवाया, इतना व्यय किया, इतना सब करने पर भी अन्तिम डोर प्रभु के हाथ ही है, आदि ।
तब हम सोचते हैं कि जब अन्त में प्रभु से प्रार्थना करनी ही है तो प्रारम्भ से ही उसका आश्रय क्यों न लें ? तब इष्टदेव की भक्ति के साथ रोग-मुक्ति, आकस्मिक दुर्घटनाओं से बचाव और अकाल मृत्यु से छुटकारा दिलाने वाले ‘अमृतवर्षी महामृत्युञ्जय’ का स्मरण आवश्यक हो जाता है ।
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