Jataka Sardeep
(अपार शास्त्र के विषय में यदि कोई जानता है तो वही बताए)। श्री नृसिंहदैवज्ञ द्वारा संकलित प्रस्तुत जातकसारदीप ग्रन्थ ‘प्रमाख्या’ व्याख्या से संवलित होकर गुणगणगरिष्ठ पाठकों के समक्ष है, यह हमारे लिए प्रमोद का अवसर है। इस ग्रन्थ की व्याख्या सर्वप्रथम हिन्दी में ही हुई है तथा आपके कर कमलों में शोभायमान है।
इस ग्रन्थ का सर्वप्रथम मूलपाठ सम्पादन श्री लक्ष्मीनारायण उपाध्याय ने किया था। इसे पाठसंशोधनपूर्वक तथा क्वचित् अर्थभेदनपरक टिप्पणी लिखकर श्री पी.पी. लक्ष्मीनारायण उपाध्याय ने मद्रास सरकार की ओरियन्टल सीरिज के अन्तर्गत तंजौर सरस्वती महल सीरिज सं. 45 में 1951 में प्रकाशित कराया था। प्रस्तुत ग्रंथ में पाठ वहीं से लिया गया है और यथासम्भव स्खलित पाठ संशोधन व अधूरे पाठ को स्रोत ग्रन्थों से पूरा किया गया है। हमें विश्वास है कि यह ग्रन्थ पाठकों के लिए थोड़ा बहुत उपकार का साधन अवश्य होगा।
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