Dattatreya Tantra
‘तन्त्र’ शब्द व्याकरण के विस्तारार्थक ‘तन्’ धातु से बना है। तन् धातु से ‘सर्वधातुभ्यः ष्ट्रन्’ इस उणादि सूत्र से ‘ष्ट्रन्’ प्रत्यय होने पर ‘तन्त्र’ शब्द बन जाता है। व्युत्पत्ति की दृष्टि से “तन्यते विस्तीर्यते ज्ञानम् अनेन इति तन्त्रम्” अर्थात् जिस क्रिया से ज्ञान का विस्तार किया जाता है, वह तन्त्र है। इसी प्रकार तान्त्रिक व्युत्पत्ति-प्रक्रिया से ‘तन्’ और ‘त्र’ इन दोनों को अलग-अलग मानकर ‘तन्’ का अर्थ प्रकृति एवं परमात्मा, तथा ‘त्र’ का अर्थ स्वाधीन बनाने का भाव लेकर तन्त्र का अर्थ ‘देवता के पूजा आदि उपकरणों से प्रकृति और परमेश्वर को अपने अनुकूल बनाने का उपायदर्शक शास्त्र’ किया है। साथ ही परमात्मा की उपासना के लिये उपयोगी जो साधन हैं, वे भी ‘तन्त्र’ ही कहलाते हैं।
Reviews
There are no reviews yet.