Dashaphala Darpan
श्री गुरु चरणों में नमन पूर्वक, सच्चिदानन्द रूप भुवनेश्वरी, त्रिपुरसुन्दरी, भगवान् शिव, विष्णु, श्री गणेश व सरस्वती देवी को मैं ग्रन्थकार प्रणाम करता हूँ। अपि च सूर्यादि नवग्रहों को प्रणाम करके, मैं श्रीनिवासपाठक दशाफलदर्पण नामक ग्रन्थ का प्रारम्भ कर रहा हूँ। विभिन्न ग्रह अपनी दशाओं में, विभिन्न कारणों से व्यक्ति को अपना दशाफल अलग ढंग से देते हैं, इसी बात का निर्णय लेते हुए, यह सत्प्रयास किया जा रहा है। थोड़े प्रयत्न से ही दैवज्ञों का कार्य सम्पन्न हो और उत्तम दशाफल कहने से मन सन्तोष से प्रसन्न हो सकें, इसी उद्देश्य से जातक शास्त्र रूपी महासमुद्र से रुचिर सारांश को मैं यहाँ कहता हूँ। सज्जन विद्वान्, बहुत विशिष्ट ज्ञान रखते हुए भी दूसरों के द्वारा किए गए कार्य में किसी बहुत विशेष दोष को ही विनम्रता से प्रकट करते हैं।
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