वाल्मीकि रामायण एवं रामचरितमानस में श्रृंगार रस का युगसापेक्षीय अध्ययन” दुर्लभैव कथा लोके श्रीमद्रामायणोद्भवा ॥39॥ कोटिजन्मसमुत्थेन पुण्येनैव तु लभ्यते । तु वाल्मीकि रामायण प्रथम अध्याय पृ०10 संसार में श्री रामायण की कथा परम दुर्लभ ही है। जब करोड़ों जन्मों के पुण्यों का उदय होता है, तभी उसकी प्राप्ति होती है। ।।39।। महर्षि वाल्मीकि संस्कृत साहित्य के आदिकवि हैं। महर्षि द्वारा प्रणीत ‘रामायण’ आदिकाव्य है। आदिकाव्यमिदं राम त्वयि सर्व प्रतिष्ठितम् । नह्मन्योऽर्हति काव्यानां यशोभाग् राघवादृते ॥18॥ उत्तरकाण्ड, सर्ग 98 पृ० 812 ‘श्रीराम! यह आदिकाव्य है।
इस सम्पूर्ण काव्य की आधारशिला आप ही हैं – आपके ही जीवन वृत्तान्त को लेकर इस काव्य की रचना हुई है। रघुकुल की शोभा बढ़ाने वाले आपके सिवा दूसरा कोई यशस्वी पुरुष नहीं है, जो काव्यों का नायक होने का अधिकारी हो। ।।18।। श्रुतं ते पूर्वमेतद्धि मया सर्व सुरैः सह । दिव्यमद्भुतरूपं च सत्यवाक्यमनावृतम् ॥19॥ 9 उत्तरकाण्ड, सर्ग 98, पृष्ठ 812 देवताओं के साथ मैंने पहले आपसे सम्बन्धित इस सम्पूर्ण काव्य का श्रवण किया है। यह दिव्य और अद्भुत है। इसमें कोई भी बात छिपायी नहीं गयी है। इसमें कही गयी सारी बातें सत्य हैं। ।।19।। जैसा कि महर्षि वाल्मीकि ने कहा है। इसमें कोई बात छिपाई नहीं गई है, इसमें सत्य वर्णित है। परन्तु यदि हम तुलसीदास कृत ‘रामचरितमानस’ से वाल्मीकि रामायण तुलना करें तो हम इसमें बहुत भिन्नता पाते हैं।
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