Article by Lokesh Agarwal
जैसे ही ज्योतिषी कुंडली में सूर्य-चन्द्र युति देखते हैं सबसे पहला ख्याल यही आता है कि जातक का जन्म अमावस्या अथवा उसके आसपास हुआ है. जैसे ही हम अमावस्या शब्द सुनते हैं हमारे मन में विचारों कि उथल पुथल होने लगती है क्योंकि कुछ लोग अमावस्या को काली/अँधेरी रात भी कहते हैं और सामान्यतः हम इसको अच्छा नहीं मानते। अमावस्या के दिन चन्द्रमा निस्तेज हो जाता हैं। आसमान से विलुप्त हो जाता है। रात्रि में चन्द्र का प्रकाश पृथ्वी पर नहीं पहुँचने से भयंकर अन्धकार छा जाता है। मन और जल तत्व में उथल-पुथल मच जाती है, जो मानसिक और शारीरिक कष्ट बढ़ाने वाली होती है।
परन्तु हर सिक्के के दो पहलु होते हैं और मुझे लगता है किसी निष्कर्ष पर पहुँचने से पहले हमको विषय के बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिए। मैं लोकेश अग्रवाल, अपने इस लेख के माध्यम से आपको सूर्य-चन्द्र कि युति से पूरी तरह अवगत कराना चाहता हूँ. किसी त्रुटि के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ।
अमावस्या का वैज्ञानिक दृष्टिकोण
अमावस्या के दिन चंद्रमा, सूर्य और पृथ्वी के बीच आ जाता है. अब प्रश्न यह उठता है कि चन्द्रमा हमको दिखायी क्यों नहीं देता। इसका सीधा सा उत्तर यह है कि चन्द्रमा का अपना कोई प्रकाश नहीं होता वह सूर्य के प्रकाश से ही प्रकाशित होता है। अमावस्या को चन्द्रमा का सूर्य की ओर वाला आधा भाग (जो हमको नहीं दिखाई पड़ता) प्रकाशित होता है और हमारी ओर का आधा भाग सूर्य का प्रकाश न पड़ने से अपनी ही छाया में डूबा रहता है अतएव अमावस्या को चन्द्रमा विलकुल दिखाई नहीं देता. अतः यह तो विज्ञान भी सुनिश्चित करता है कि इस दिन पृथ्वी पर रहने वाले लोगों के लिए चंद्रमा कान्तिहीन/क्षीण होता है. इसे हम निम्न चित्र से जान सकते है।
ज्योतिष में ऐसा माना जाता है कि सूर्य एवं चंद्र दो भिन्न तत्व के ग्रह है और हम जानते है कि जब दो भिन्न तत्व परस्पर मिलते है तो कुछ नवीन होता है। सूर्य एवं चंद्र का ज्योतिषीय विवरण इस प्रकार है
सूर्य-चन्द्र का ज्योतिषीय दृष्टिकोण
सूर्य | चन्द्र | |
तत्व | अग्नि तत्व | जल तत्व |
लिंग | पुरुष | स्त्री |
स्वभाव | पाप ग्रह | सौम्य ग्रह |
कारक | आत्म कारक | मन कारक |
कारक | पिता कारक | माता कारक |
रंग | गहरा लाल रंग | सफ़ेद |
दिशा | पूर्व | पश्चिम-उत्तर कोण |
ज्योतिष शास्त्र कहता है कि बलहीन/कान्तिहीन/क्षीण चंद्रमा शुभ ग्रह न रहकर अशुभ बन जाता है और पाप ग्रह के समान फल देता है. चन्द्रमा का पक्षबल बहुत कमजोर हो जाता है
अतः प्रत्येक ज्योतिषी इस युति को बहुत दुर्भाग्यपूर्ण बताता है. कहते है कि दोनों जिस भाव में हैं उस भाव का नाश कर देंगे अथवा कमजोर कर देंगे। बात भी सही प्रतीत होती है क्योंकि यह युति है अग्नितत्व और जलतत्व की. जल अग्नि को बुझाने का प्रयास करता है और अग्नि जल को तीव्र ऊष्मा देकर वाष्प में बदलने का प्रयास करती है. ऐसा माना जाता है कि जब सूर्य और चन्द्र कि युति जलतत्व राशि कर्क में होती है तो बारिश होती है. दोनों तत्व एक साथ नहीं रह सकते। अगर एक साथ रखना है तो व्यक्ति को इनकी ऊर्जा का अच्छी तरह से प्रबंधन करना पड़ेगा। अगर कर लिया तो संगठन का अच्छा परिणाम निश्चित है.
यह युति कैसा प्रभाव देगी यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि जिस राशि में यह युति बन रही है उसका स्वाभाव कैसा है. अग्नितत्व, पृथ्वी तत्त्व, वायु तत्त्व अथवा जलतत्व क्योंकि परिणाम प्रबल रूप से बदल जाएगा।
जलतत्त्व की अग्नितत्व से शत्रुता है अतः जब यह युति जलतत्व राशि (4, 8, 12) में बनेगी तो सूर्य को बहुत कष्ट होगा और जब चन्द्र को प्रकाश देने वाला ग्रह सूर्य ही कष्ट में आ गया तो पहले से ही क्षीण चन्द्र क्या करेगा। फिर भी अपने ही जलतत्व में गया चन्द्र, सूर्य पर हावी होने कि नाकाम कोशिश करेगा और मनुष्य के मन में हमेशा उथल पुथल सी रहेगी, भावनाओं में सदा द्वन्द होता रहेगा । परन्तु अगर यह युति बृश्चिक राशि में बन गयी तो परिणाम और भी गम्भीर हो सकते हैं जहाँ चन्द्रमा भी नीच का हो जाएगा। अगर यह युति अग्नि तत्त्व राशि (1, 5, 9) में बनती है तो सूर्य प्रबल हो जाएगा। सूर्य अग्नि तत्त्व मेष राशि में ही उच्च का होता है और उसकी अपनी सिंह राशि भी अग्नितत्व है अतः सूर्य अपने आगे किसी की भी मनमानी नहीं चलने देगा। एक अलग नजरिया यह भी है कि सूर्य तथा चन्द्र कि अग्नितत्व राशि और जलतत्व राशि के स्वामियों से मित्रता है और कोई भी ग्रह अपने मित्र के घर को ख़राब नहीं करता जब तक कि वो नीच का न हो जाए.
पृथ्वीतत्त्व की अग्नितत्व और जलतत्व दोनों से मित्रता है अतः जब यह युति पृथ्वी तत्त्व राशि (2, 6, 10) में बनेगी तो वृष पृथ्वी तत्त्व राशि में चन्द्र उच्च का हो जाता है और क्षीण होने के बावजूद भी उसको उच्चबल मिल जाता है. यहाँ भूमि तत्त्व वृष राशि में गया चन्द्र मन को स्थिर रखने को कोशिश करेगा परन्तु सूर्य धन कि लालसा को बढ़ाएगा जिसके फलस्वरूप फिर से विचारों में घमासान शुरू हो जाएगा। मकर राशि सूर्य के परम शत्रु शनि कि राशि है और यहाँ बैठा सूर्य बहुत विचलित हो जाता है. नीच कार्य करने को उत्साहित करता है और चन्द्र के साथ होने कि वजह से उसका मन भी यही करने को चाहेगा।
वायुतत्व का प्रतिनिधित्व शनि तथा राहु करते हैं. वायु तत्त्व राशियों (3, 7, 11) में से तुला राशि में सूर्य नीच का हो जाता है और यहाँ सूर्य और चन्द्र कि युति भयानक परिणाम दे सकती है. कुम्भ राशि में सूर्य राजयोग नष्ट करता है और साथ में अपने भाव से अष्टम गया चन्द्र रही सही कसर पूरी कर देगा। अगर पति पत्नी दोनों मिलकर बोझ उठाएं तो जीवन का निर्वाह सही हो सके.
परन्तु अब देखते हैं दूसरा दृष्टिकोण। अगर हम कारकत्व दृष्टिकोण से देखें तो यह युति है ज्योतिष शास्त्र के सबसे शक्तिशाली और महत्वपूर्ण ग्रहों के राजा और रानी की, आत्मकारक और मन के कारक ग्रहों की, मनुष्य के आस्तित्व को जन्म देने वाले जगत पिता और पार्वती की तरह से जगत को पालने वाली माता की, दो मित्र ग्रहों की अतः कुछ न कुछ अच्छे परिणाम तो मिलेंगे ही. जातक बहुत फोकस्ड/केंद्रित होता है तथा अपने लक्ष्य को प्राप्त करने का हर सम्भव प्रयास करता है. अगर जातक अपने आपको, अपनी क्षमता को समझ ले और उसको आत्मज्ञान हो जाए तो मन-आत्मा कि यह चन्द्र-सूर्य युति आपको प्रगति कि और अग्रसर कर देगी और आपका मुकाबला करने कि क्षमता किसी में नहीं होगी। अगर आपके माता-पिता दोनों आपका सहयोग करें और जातक माता-पिता के साथ ही रहे तो परिणाम और ज्यादा अच्छे हो सकते हैं.
विभिन्न लग्न के लिए सूर्य-चन्द्र युति
- मेष लग्न में सूर्य पंचमेश, त्रिकोणेश, योगकारक है और चन्द्र चतुर्थेश और दोनों ही लग्नेश मंगल के मित्र है अतः अगर यह युति लग्न अथवा त्रिकोण में बने तो राजयोग कारक होगी. सप्तम भाव में बनने से विवाह जीवन अत्यंत संघर्षपूर्ण हो जाएगा तथा अष्टम भाव में बनने से शिक्षा में असफलता मिलेगी।
- वृष लग्न में सूर्य चतुर्थेश, सुखेश है और चन्द्र तृतीयेश तथा जहाँ लग्नेश शुक्र, सूर्य और चन्द्र दोनों को अपना शत्रु मानता है वहीँ चन्द्र शुक्र से सम भाव रखता है. अतः चतुर्थ भाव में अपेक्षाकृत अच्छा परिणाम देगी। सप्तम भाव में विवाह में बाधा जरूर देगी।
- मिथुन लग्न में सूर्य तृतीयेश, अकारक है तथा चन्द्र धनेश, मारकेश तथा लग्नेश बुध सूर्य को अपना मित्र मानता है चन्द्र को अपना शत्रु अतः दशम भाव में बैठकर राजसुख तथा सरकार से धन देंगे। पंचम भाव में पितृदोष की सम्भावना बना देंगे।
- कर्क लग्न में सूर्य धनेश है और चन्द्र लग्नेश अतः यह युति फ़ायदा देने वाली होती है.
- सिंह लग्न में सूर्य लग्नेश है और चन्द्र द्वादशेश अतः यह युति लग्न का व्यय करेगी अर्थात शरीर की हानि।
- कन्या लग्न में सूर्य द्वादशेश है और चन्द्र एकादशेश, लाभेश, आयेश तथा लग्नेश बुध सूर्य को अपना मित्र मानता है चन्द्र को अपना शत्रु अतः यह युति धन का इतना व्यय कराने वाली होगी कि कर्ज हो जाए.
- तुला लग्न में सूर्य एकादशेश, लाभेश एवं बाधक है और चन्द्र दशमेश, कर्मेश तथा दोनों ही लग्नेश शुक्र के शत्रु अतः यह युति राजयोग भी बनाएगी और जिस भाव में बनेगी उस भाव के परिणाम में बाधा भी डालेगी।
- वृश्चिक लग्न में सूर्य दशमेश, कर्मेश है और चन्द्र भाग्येश, योगकारक तथा बाधक तथा दोनों ही लग्नेश मंगल के मित्र अतः यह युति द्वितीय, पंचम, नवम, दशम तथा एकादश भाव में अच्छे परिणाम देगी।
- धनु लग्न में सूर्य भाग्येश, त्रिकोणेश है और चन्द्र अष्टमेश तथा दोनों ही लग्नेश गुरु के मित्र अतः यह युति कोई विशेष अच्छे परिणाम नहीं देगी जब तक कि लग्नेश गुरु कि शुभ दृष्टि प्राप्त न हो.
- मकर लग्न में सूर्य अष्टमेश है (हांलाकि सूर्य-चन्द्र को अष्टमेश का दोष नहीं लगता) और चन्द्र सप्तमेश तथा दोनों ही लग्नेश शनि के शत्रु हैं अतः यह युति बुरे परिणाम ही देगी। दशम भाव में व्यापार नष्ट कर देगी
- कुम्भ लग्न में सूर्य सप्तमेश, मारकेश है और चन्द्र षष्टेश होने के नाते अकारक तथा दोनों ही लग्नेश शनि के शत्रु हैं अतः यह युति बुरे परिणाम ही देगी। नवम भाव में पितृ दोष कि सम्भावना बनाएगी।
- मीन लग्न में सूर्य षष्टेश है जबकि चन्द्र पंचमेश होने के नाते कारक तथा दोनों ही लग्नेश गुरु के मित्र अतः यह युति कोई विशेष अच्छे परिणाम नहीं देगी जब तक कि लग्नेश गुरु कि शुभ दृष्टि प्राप्त न हो.
सारावली ग्रन्थ के अनुसार विभिन्न भावों में सूर्य एवं चंद्र युति के फल :
- यदि सूर्य व चन्द्रमा एक भाव या एक राशि में हो तो जातक स्त्रियों के वश (अनुकूल) में रहने वाला, नम्रता से हीन, (अविनयी), कूट नीति का ज्ञाता, अधिक धनी, आसव (मद्य व फलादि) के बेचने में चतुर और अच्छा कार्यकर्ता होता है.
- यदि जन्म के समय लग्न में सूर्य-चन्द्रमा हों तो जातक माता-पिता के दुख से दुःखी, सम्मान-पुत्र-ऐश्वर्य से हीन, दरिद्री तथा दुःखी होता है.
- यदि चतुर्थ भाव में सूर्य-चन्द्रमा हों तो जातक बान्धव-पुत्र सुख से रहित, दरिद्री व अधिक मूर्ख स्वभाव का होता है.
- यदि सप्तम भाव में सूर्य-चन्द्रमा का योग हो तो जातक मित्र-पुत्र से रहित, सदा स्त्रियों से पीड़ित तथा दीन होता है.
- यदि दशम भाव में सूर्य-चन्द्रमा का योग हो तो जातक सुन्दर देहधारी, बलवानों का स्वामी, राजसी, निर्दयी, विपरीत स्वभाव वाला तथा शत्रुपक्ष को पीड़ा देने वाला होता है.
- यदि कुंडली में नवम भाव में सूर्य चन्द्रमा हों तो जातक अल्पायु, नेत्ररोगी, धनी, सुन्दर, भाग्यवान तथा कला प्रेमी होता है.
प्रसिद्ध ज्योतिष ग्रन्थ होरारत्नम् के अनुसार:
यदि जन्मकाल में चन्द्रमा व सूर्य एक राशि में हों तो जातक परदेस जाने वाला, योगी और परिवार के लोगों से लड़ने वाला होता है.
आइये अब ऐसी कुंडली समझने कि कोशिश करते हैं जिसमें सूर्य-चन्द्र युति है
स्त्री जातक, जन्म दिनांक : जून 6, 1986, समय : 23 : 47 : 0, जन्म स्थान : मुंबई
जातक का जन्म कुम्भ लग्न, वृष राशि तथा रोहिणी नक्षत्र में हुआ है. जन्म से चन्द्र की महादशा शुरू हुई. चन्द्र-सूर्य की युति चतुर्थ भाव में वृष राशि (पृथ्वी तत्त्व) में बनी हुई है. चन्द्र 13:08:33 Degree अपनी मूलत्रिकोण राशि में, सूर्य 22:04:60 Degree अपनी शत्रु राशि में उपस्थित है. चन्द्र, सूर्य से 08:56:27 Degree पीछे है. चतुर्थ भाव पर शनि कि सप्तम दृष्टि है. सूर्य, शनि से 190:03:19 Degree आगे निकल चुका है जो कि सप्तम दृष्टि (180 Degree) से आगे है अतः शनि का विशेष प्रभाव सूर्य पर नहीं पड़ रहा. किसी और ग्रह कि सूर्य-चन्द्र पर दृष्टि नहीं है अतः यह कुंडली सूर्य-चन्द्र युति परखने के लिए उत्तम प्रतीत होती है.
अपनी मूलत्रिकोण राशि, रोहिणी नक्षत्र, स्थिर राशि में गया चन्द्रमा जहाँ जातक का मंन स्थिर रखने कि कोशिश करता है वहीँ सूर्य धन कि लालसा को बढ़ा देता है फलस्वरूप जातक के मन में प्रतिदिन द्वन्द चलता रहता है. चन्द्र षष्टेश है और महादशा में माँ और जातक दोनों बहुत बीमार रहे और बहुत जल्दी जल्दी हॉस्पिटल देखा। माँ और जातक में प्रतिदिन झगड़ा होता है परन्तु अंत में सब कुछ ठीक और दोनों एक दुसरे से ज्यादा समय अलग नहीं रह पाते. मतलब यहाँ भी मन में उतार चढाव होता है । सूर्य सप्तमेश है, शादी को लेकर भी जातक बहुत भ्रमित रहता है। यहाँ मैं कह सकता हूँ की अगर जातक के माता पिता मिलकर प्रयास करें तो भ्रम तो दूर होगा ही साथ ही जातक ज्यादा सुखी रह पायेगा।
About Author: लोकेश अग्रवाल सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं और आठ साल से बहु राष्ट्रीय कंपनी में कार्यरत हूँ। विज्ञान और तकनीकी से स्नातक होने के नाते मैं किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले ज्योतिष के सिद्धांतों और गणित को तर्क के साथ समझता हूँ और अनुसंधान करने की कोशिश करता हूँ आगे प्रभु की इच्छा रहती है। ज्योतिष मेरा जुनून है और मैं इसको धन कमाने के लिए नहीं करता। इस दिव्य विज्ञान के माध्यम से किसी की मदद करने से मुझे प्रसन्नता और आनंद की प्राप्ति होती है। मेरा लक्ष्य है की ज्योतिष शास्त्र का सम्पूर्ण विश्व में विस्तार किया जाए जिससे की मनुष्य इसकी सार्थकता तथा महत्व को समझे।
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