Vrat Vidhan Vivah Evam Santana
Publication: Alpha Publication
कलिकाल के वर्तआन चक्र के विकृत एवं विरूपित स्वरूप में निमग्न होते जा रहे समाज के मध्य व्रत संषादन की लोकप्रियता, उपयोगिता तथा उसके विलक्षण प्रभाव की महिमा को व्रत विधान : विवाह एवं सन्तान‘ नामक कृति के मधुरिम मधुवन के महकते प्रांगण में सम्बन्धित जातन्त्रें के क्यूख प्रस्तुत करने की चेष्टा की गई है । यह कृति नौ पृथक्पृथक् अध्यायों में व्याख्यायित है जिन्हें अग्रांकित शीर्षकों से नामांकित किया गया है।
मंत्र सैद्धान्तिक विश्लेषण, वैवाहिक विलम्ब एवं ग्रहयोग ज्योतिषीय विश्लेषण, वैवाहिक विलम्ब कुछ अनुभूत मंत्र, स्तोत्र एवं प्रयोग, व्रत परिज्ञान प्रविधि एवं प्रावधान, वैवाहिक समस्याओं का सुगम समाधान व्रत विधान, विशिष्ट व्रत का अनुसरण वैवाहिक विसंगतियाँ, वैधव्य, पार्थक्य का शमन, संतति प्रदाता: परिहार प्रावधान, सर्वश्रेष्ठ अनुष्ठान व्रत विधान तथा प्रमुख पुत्र प्रदाता व्रत एवं विधान।
विविध व्रत विधान, विवाह एवं सन्तान से सम्बन्धित अनेक सुगम समाधान इस कृति में समायोजित किये गये हैं ।
प्राय: व्रत और उपवास की भिन्नता से अनभिज्ञ जनसामान्य व्रत को अनुष्ठान के रूप में उपयोग करने तथा उसके चमत्कृत कर देने वाले प्रभाव से अपरिचित है। इस वास्तविकता की सम्यक् व्याख्या खत विधान विवाह एवं सन्तान‘ नामक कृति मैं आविष्ठित है।
वैवाहिक विलम्ब एवं विघटन का सुगम समाधान है मंत्रजप, स्तोत्र पाठ, व्रत और दान।
इसी प्रकार से संततिहीनता को संतति सुख में रूपांतरित करने हेतु विविध विधान मंत्र प्रयोग तथा अनेक व्रत और उनका अद्भुत एवं अनुभूत व्यावहारिक पक्ष इस कृति में समायोजित किया गया है।
वैवाहिक विलम्ब, विघटन, संततिहीनता अथवा शाप से ग्रसित अनेक ऐसे जातक हैं जो संस्कृत के मंत्र, स्तोत्र तथा अनुष्ठान का प्रतिपादन करने में समर्थ नहीं हैं तथा न ही वह योग्य आचार्यो द्वारा सम्बन्धित अनुष्ठानों का प्रतिपादन कराने में सक्षम हैं ।
विवाह एवं सन्तान सुख हेतु आतुर एवं प्रतीक्षारत जातकों के लिए सर्वाधिक सुगम मार्ग है, उपयुक्त व्रत का चयन तथा विधि विधान सहित उसका अनुकरण, प्रारम्भ एवं उद्यापन आदि, जो इस कृति का सर्वस्व है ।
इस कृति में अनेक पुत्रप्रदाता व्रत एवं संतति सुख की कामना की संसिद्धि हेतु विविध व्रत एवं विधान समायोजित किये गये हैं, जो अद्भुत और अनुभूत हैं जिनमें से कात्यायनी व्रत, पुंसवन व्रत, पयोव्रत, श्रावण शुक्ल एकादशी व्रत, षष्ठी देवी व्रत आदि प्रमुख हैं तथा वैवाहिक विलम्ब के समाधान हेतु विविध वारी, से सम्बन्धित व्रतविधान और वैवाहिक संकट एवं व्यवधान के परिहार हेतु मंत्रजप, स्तोत्र पाठ आदि के साथसाथ उसके विधान भी इस कृति में सात्रिहित हैं।
यह कृति अपनी सारगर्भिता, सार्वभौमिकता तथा उपयोगिता के कारण समस्त ज्योतिष प्रेमियों के लिए अत्यन्त हितकर और लाभप्रद सिद्ध होगी, इसमें किंचित् सन्देह नहीं।
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