Chikitsa Jyotish
ज्योतिष विद्या का विधिवत् अध्यापन इस ब्रह्मविद्या के संवर्धन एवं संरक्षण के लिए प्रशंसनीय पुरुषार्थ कर रही है। कौंसिल के द्वारा अब तक ज्योतिष के वास्तविक सिद्धांतों का विश्लेषण कर सकने में सक्षम हजारों लोग तैयार हो चुके हैं और हर साल हो रहे हैं।
ज्योतिष विद्या पिछले एक हजार वर्षों से दबी रही है जिससे कई आर्ष ग्रंथों की पांडुलिपियां नष्ट हो गयी, कुछ पुस्तकों की प्रामाणिकता खो गई। लेकिन जो भी बचा है मेरी दृष्टि में वह काफी है और जितना बचा है उसका ठीक ठीक समयसापेक्ष विश्लेषण कर लेना ही ज्योतिषी की कुशलता है। आज उपलब्ध ऐसे कई सूत्र हैं जिनका सही विश्लेषण और युगसापेक्ष अर्थ न किया जा सका तो वह सूत्र जो चमत्कारिक परिणाम दे सकता था वह नहीं दे पायेगा और इस प्रकार यह ज्योतिष जगत का बहुत बड़ा नुकसान होगा जिसे एक अध्येता और अनुसंधायक ही जान सकता है।
प्रायः ज्योतिष के मूल ग्रन्थ तो संस्कृत में ही हैं, संस्कृत से हिन्दी व अंग्रेजी में जो टीकायें हुई हैं उसमें भी अंग्रेजी की टीकायें व अनुवाद अधिक उपयुक्त और ठीक माने जाते रहे हैं। इधर पिछले दस वर्षों में जनमानस में ज्योतिष के प्रति जो जिज्ञासा जगी है उसे देखते हुए भविष्य में सभी भाषाओं में ज्योतिष की पुस्तकों की आवश्यकता रहेगी। आजकल इस क्षेत्र में दो तरह के लेखक विद्यमान हैं एक वे जो व्यवसायिक लेखन प्रक्रिया से जुड़े हैं और सिर्फ अर्थोपार्जन ही उनका धर्म ध्येय है। दूसरे वे प्रामाणिक लोग हैं जो अध्ययन अध्यापन और अनुसंधान की प्रक्रिया से गुजर कर इस ब्रह्मविद्या के गूढ़ सूत्रों को प्रकट करने में रूचि रखते हैं ताकि यह विद्या अन्य मानवोपयोगी विद्याओं की तरह ‘बहुजनहिताय बहुजनसुखाय’ के सूत्र पर खरी उत्तर सके।
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