सुखद परिणय, प्रणय के कुंज-निकुंज की सौरभ सुधा से समृद्ध.. वंशलतिका की निरन्तरता तथा प्रीति प्रतीति परिपूरित पावन सम्बन्धों के सृजन, सृष्टि एवं दृष्टि का सबल, सरस, सघन, सशक्त साधना सेतु प्रणय-पथ का अनुगामी एवं अनुशीलन ही है। विवाह की अनिवार्यता,. सृष्टि के संचालन का आधारभूत सत्य है। विवाह का प्रमुख उद्देश्य सृजन तो है ही, साथ ही विवाह ईश्वर प्रदत्त काम के ललाम आयाम के प्रत्यूषी पुष्प के श्रृंगार का, तन और मन को आन्दोलित करने वाले प्रेमा और आत्मीयता, अनुराग एवं आनन्द के प्रादुर्भाव का अभिनव आयामा मी है।















 
     
     
     
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