इस पर ऐसा मानने में श्राता है कि अन्य मारकग्रहों से सम्बन्धित शनि हो तो वह सब शुभ अथवा अशुभ योगों का विध्वंस (नाश) करके स्वयं मनुष्य के लिये मारक होता है। इसमें सन्देह नहीं है। कारण यह स्वयं स्वाभा- विक रीति से पापग्रह है और उसमें फिर यदि मारक स्थान में बैठा हुआ हो अथवा मारक ग्रहों के साथ उसका सम्बन्ध हुआ हो तो शनि में विशेष पापिष्ठता आती है श्रीर उस कारण से वह अधिक बलवान् अन्य मारक ग्रहों की परवा न करते हुए स्वयं अपनी गज्ञा का उपयोग करता है और अपनी महादशा अथवा अंतर्दशा में मनुष्य को सदश्य करके मृत्यु देना है, इसमें संशय नहीं है। स्वाभाविक तौर पर अपनी सामान्य मान्यता ऐसी है कि शनि विशेष अनिष्टग्रह है और जब-जब शनि की चन्द्रमा को साढ़ेसाती अथवा अशुभ चतुर्थ, अष्टम शनि का गोचर से भ्रमण होता है तब-तब मनुष्य को स्वाभाविकः रीति से विशेष प्रमाण में भय लगता है। शनि की एक बात या विशिष्टता यह है
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