होराशास्त्र से सम्बन्धित यह ग्रन्थ ज्योगषशास्त्र के मुख्य-मुख्य आचार्यों के मतों को लेकर लिखा गया है। 1122 पृष्ठों के इस बृहदाकार ग्रन्थ में ज्योतिष के सभी विषय सरल रीति से समझाये गए हैं।
ग्रन्थ दो भागों में विभाजित है किन्तु दोनों भाग एक ही जिल्द में आ गये हैं। सम्पूर्ण ग्रन्थ के तीन प्रवाह हैं। प्रथम भाग में गणित प्रवाह और ज्योतिष रहस्य प्रवाह दिए गए हैं, द्वितीय भाग में व्यावहारिक प्रवाह हें। तीनों प्रवाह 34 अध्यायों और 357 धाराओं में विभाजित हैं।
विषय की दृष्टि से – सम्पूर्ण ग्रन्थ के 34 अध्यायों में संवत्सर, दिन, मास आदि कालंज्ञान कराने के साथ-साथ नक्षत्र, ग्रह, राशि, लग्न भाव, दशा, अरिष्ट मृत्यु, विद्या, विवाह, सम्पत्ति, व्यवसाय, धर्म, आयु, अष्टकवर्ग, जन्मलग्न योग, रोग, अवस्था, महादशा, अन्तरदशा, गोचर, मुहूर्त आदि ज्योतिष-शास्त्र के महत्त्वपूर्ण विषयों पर शास्त्र के आधार पर आधुनिक ढंग से विचार किया गया है। द्वितीय प्रवाह में ।5 से 22 तक के अध्यायों को तरंग नाम देकर मनुष्य के जीवन पर ज्योतिषशास्त्रानुसार विचार प्रकट किए गए हैं। प्रथम तरंग में अरिष्ट, द्वितीय में परिवार , तृतीय में विद्या, चतुर्थ में विवाह, पञ्चम में संतान, षष्ठ में व्यवसाय, सप्तम में धर्म और अष्टम में आयु सम्बन्धी विवेचन हुआ है। जीवन की तरंगों का एवं विध अंकन इस ग्रन्थ का विशेष योगदान है।
व्याख्या-शैली सरल है। 62 चक्रों के समावेश से सुगम शैली को सुगमतर बना दिया गया है। परिशिष्ट में कतिपय प्रख्यात महापुरुषों की तथा बालक, बालिका, महिलाओं की 93 कुण्डलियाँ हैं जो व्यावहारिक ज्योतिषज्ञान में अतीव उपयोगी सिद्ध होंगी।
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