भारतीय दर्शन सत्त्व, रजसू, तमस् को जगत् का मूल कारण मानता है, शआ्ायुरवेद वायु, पित्त, कफ, इन तीन को शरीर का मूल कारण मानता है। शरीर मे होने वाले सवे भौतिक और रासायनिक परिवतेनों अर्थात् मेटाबोलिज्म’ का कारण इन्ही तीन को कहता है। मूलरूप मे वह इनको अप्रत्यक्ष मानता है यद्यपि इनके प्राकृतिक और वैकृतिक परिणामों को जो प्रत्यक्ष हैं वह वायु, पित्त, कफ इन नामों से पुकारता है। स्वास्थ्य का कारण होने से वह इन्हे धातु’ कहता हे और रोगो का कारण होने से वह इन्हे दोष” कहता है। वायुतत्त्व — उस तत्त्व को जो शरीर की ऐच्छिक अनैच्छिक सर्वे चेष्टाओं का कारण है ‘वा गतौ’ धातु से वायु कहा गया है। चरक ने कहा है “सर्वा हि चेप्टा वातेन’ | इस तत्त्व को आयु का प्रत्यायक कहा हे । वायुरायु ‘ तथा आयुपोज्लुवृत्तिप्रत्ययभूतों वायु ” ऐसा चरक ने कहा है। लैटिन भाषा के विटा ‘शश! शब्द का अर्थ आ्रायु या 7॥० होता है। यह शब्द वात का ही अपश्रश प्रतीत होता है | वायु के पर्यायवाचक शब्दों मे विद्युत” शब्द का प्रयोग भी हुआ है । चर्क ने भी कहा है वायुस्तन्त्र-यन्त्रधर ‘ अर्थात् शरीर रूपी यन्त्र की सचालक शक्ति वायु है
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