Prasav Chintamani
गाना के गर्भ में पल रहा एक-दो बहुओं का समूह र महीनों में धूम-धुरंव सुर्व-मोद बात-माने जाता है? जाता है कोई कि यह मुन्ना बनेगा या मुन्नी ? जानता है कोई कि वह अपने माताओं को वरिक संबन्धियों तक की हि पलटने आया है? भोर बनता है कोई कि यह जभीन और आसमान के हुनाने एक करने माया है, या फिर बरवरों की तरह यह भी एक उमड़ती-पुरुहती दुनिया में लापता होने आया है ?
प्रसव वा शाम के सवा में ऐसे सभी जानों का उत्तर ज्योतिष की इस पुस्तक में उसी प्रकार तत्काल मिलता है जिस प्रकार चिन्तामणि रत के मनोवांछित बच् मिलती है. बतः इस पुस्तक का चिहानायक है। राष्ट्रदान में 1887 ई० में जाम लेकर 1979 ई० मिने अनेक एग्मों की रचना करके ज्योतिषयों कीकृत करने वाले बाचार्य मुकुन्तल ने 145 संस्कृत श्लोकाचार प्रकरणों में संकलन किया था। इसे भऔर भी सपूर्णते के लिए मेरे उन्हीं के अन्य ज्योतिय तत्व ते 38 लोच और संकलित करके उन्हें प्रकाशों में दुनियोजित किया। इन पुस्तक के संपादन का यह एक पक्ष है।




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