Manusmriti
मनु-स्मृति हिन्दू-धर्म की आचार संहिता है। ‘मनु-स्मृति’ नाम सुनते ही प्रत्येक हिन्दू के मन में इस ग्रन्थ को पढ़ने और समझने की जिज्ञासा उत्पन्न होती है। महर्षि मनु ने अपने पुत्र भृगु को और भृगु ने अपने शिष्यों को इसका उपदेश दिया। महर्षि मनु ने सम्यक् समाज-संरचना के लिए वर्ण व्यवस्था दी। जीवन की पूर्ण सफलता के लिए आश्रम-व्यवस्था की स्थापना की। ब्रह्मचर्य आश्रम विद्याध्ययन के लिए, गृहस्थ आश्रम सन्तान-वृद्धि के लिए, वानप्रस्थ समाज-सेवा के लिए और सन्यास आश्रम ईश्वर-चिन्तन के लिए है। प्रत्येक आश्रमी के लिए आचार-विचार के नियम विस्तारपूर्वक निश्चित किये है। गृहस्थ आश्रम वंश और समाज के पालन के लिए है। घर आया हुआ अतिथि भूखा नहीं जाना चाहिए। दान अवश्य दें; किन्तु पात्र-कुपात्र का निश्चय करके।
पितरों के श्राद्ध अवश्य करें, किन्तु भोजन केवल वेदपाठी सदाचारी ब्राह्मणों को ही करायें। मनु-स्मृति में यज्ञों पर विशेष बल दिया गया है। मनु ने सात्विक यज्ञों को ही मान्यता दी है; किन्तु कालान्तर में मांस-भोजी ब्राह्मणों ने यज्ञ और श्राद्ध में मांस परोसने की व्यवस्था देने वाले प्रक्षेपक जोड़ दिये हैं। इस कारण गत दो-तीन सदियों से मनु के मांसाहार का पक्षधर होने का विवाद चल रहा है। किन्तु विद्वान टीकाकार ने अपनी पैनी दृष्टि, सूक्ष्म विवेक और विस्तृत अनुभव के आधार पर उनका खन्डन किया है। हमें आशा ही नहीं, अपितु पूर्ण विश्वास है कि हमारे सुधी पाठक प्रस्तुत ग्रन्थ का अध्ययन करके मनुस्मृति के वास्तविक स्वरूप और सिद्धान्तों का ज्ञान प्राप्त करेंगे और तदनुरूप आचारण करते हुए सुखी और दीर्घ जीवन प्राप्त करेंगे तथा चतुवर्ग-फल-प्राप्ति के अधिकारी बनेंगे।
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