भारतभूमि सब रत्नोंकी प्रसवित्री है। भारतवर्ष संसारका प्रदर्शनागार कहकर, भूमण्डलमें प्रसिद्ध है। भारतवर्ष प्रकृतिका प्रियतम निकेतन है। प्रकृति देवीकी विभिन्न भीमकान्त मूत्तिका एकत्र समावेश, भारतमें पूर्णरूपसे विकासित दीख पडतो है। या गगनस्पर्शी उत्तुङ्गशृङ्ग समन्वित हिमधवलित पर्वतमाला या उत्ताल तरङ्ग-मय भीतिजनक नीलवर्ण साललपूर्ण समुद्र, या बहुदूर प्रवाहिनी आवर्त्तमयी सुवि स्तीर्णा स्रोतस्वती, या वालुका राशिपूर्ण विभीषिकाकी साक्षात् प्रतिकृति मरुभूमि, या भीषण हिंस्रक श्वापदसंकुल जनमानवविहीन गहन अरण्यानी, या सौधमालाप-रिशोभित कोलाहलपूर्ण सुन्द्रनगरी, या नानाविध सुरस फल पुष्प विभूषित नयन तृप्तिकर सुरम्य उपवन, या लतिका परिवेोष्ठित सुमधुर पक्षिव विनादित सुविशाल वृक्षराजि, या श्यामल शस्य परिशोभित कृषकके यत्न परिरक्षित शस्यक्षेत्र (धान्यका खेत), या योगमग्न तपस्वियोंका शान्तिरतास्पद तपोवन-भारतवर्षमें किसी के दृश्यका अभाव नहीं है। भारतविभिन्न भाषाभाषी विभिन्न धम्मर्मावलम्बी विभिन्न जातीय लोगोंकी आवासभूमि है। भारतवर्ष भिन्न भूमण्डलके किसी प्रदेशमें जाति, धर्म, भाषा वर्ण, स्वभाव और आचारगत सम्पूर्ण वैसादृश्यका इस प्रकार एकत्र सन्निवेश परिलक्षित नहीं होता। संक्षेपसे, भारतवर्षको क्षुद्रायतन पृथिवी वा छोटा भूमण्डल कहनेसे भी अत्युक्ति दोष नहीं होगा ।
भारत जिस प्रकार प्रागुक्त मनोमुग्धकर नैसर्गिक दृश्यादिमें जगत्में सबसे श्रेष्ठ एक समय धन एवं ज्ञानरत्नसे भी भारत उसीप्रकार श्रेष्ठ आसनपर अधिष्ठित था महामूल्य धनरत्नकी प्रसवित्री कहकर मिसरीय; फिनिसीय, इहूदी, ग्रीक, रोम्यान, आरब और चैनिक (चिनदेशका प्रभृति नाना प्राचीन वैदोशक जाति वाणिज्य व्यपदेशसे भारतमें आकर, भारतके धनसे अपना २ धनागार (खजाना) परिपूर्ण किये । भारतका अतुल ऐश्वर्यप्राप्ति दुराशामें विमोहित होकर, नानाजातीय नाना देशीय, दिग्विजयीगण, भारतको अपने करतलगत करनेके लिये विमिन्नसम यर्मे प्रयासी हुए हैं, एवं निदारुण उत्पीडनसे निरीह भारतवासीको उत्क्त्युक्त उत्पीडित और भयसंत्रस्त कर छोडा ।
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