इस पुस्तक का अभिप्राय किसी भी रूप में जुए या सट्टे को प्रोत्साहन नहीं देना है। मानव जाति अस्तित्व से ले कर आज तक बाजी खेलने या जोखिम उठाने में विश्वास रखती आई है, चाहे वह मनोरंजन से जुड़ा हो या व्यापार प्रांरंभ करने से, यात्रा से जुड़ा हो या शेयर के क्रय-विक्रय से, जमीन के क्रय-विक्रय से जुड़ा हो या अन्य वस्तुओं से। यदि लोग अनुमान लगाने में या जोखिम उठाने में विश्वास रखते हैं तो यह पुस्तक उन्हें सिखाएगी कि वे ब्रह्माण्ड के नियमों का अपनी न्याय क्षमता से मेल कैसे बिठाएं।
मां वीणावादिनी का वरदहस्त तथा विश्व के कोने-कोने से भेजे गये इष्ट मित्रों, प्रशंसकों एवं प्रबुद्ध पाठकों के असंख्य पत्र इस पुस्तक को लिखने की प्रेरणा देते रहे और वहीं इसी के साथ ही कुछ मौलिक अनुभूत प्रयोगों की जानकारी भी इस पुस्तक की प्रस्तुति में सहायक रही।
उनके अतिरिक्त मैं आभारी हूं डिवाइन किंग्डम फाउंडेशन नोएडा के अध्यक्ष आचार्य दिनेश मिश्र तथा स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के उप-महाप्रबंधक रोटेरियन ओम प्रकाश भारद्वाज जी का जिन्होंने सदैव हमारे हर कार्य को सहयोग व प्रोत्साहन दिया।
अंत में मैं हार्दिक धन्यवाद प्रकट करता हूं डायमंड पाकेट बुक्स के प्रबन्ध निदेशक श्री नरेन्द्र जी का जिन्हें लगन है, अच्छा साहित्य उचित मूल्य पर अधिक से अधिक पाठकों तक पहुंचाने की तथा आदि शंकराचार्य वैदिक एजूकेशन सोसाइटी के प्राचार्य श्री सेवाराम जयपुरिया एवं आचार्य श्री दलजीत कालिया जी का जिन्होंने समर्पण भाव से इस पुस्तक के संपादन में अपना अमूल्य योगदान दिया।
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