उडुदायप्रदीप नामक मौलिक ग्रन्थ ‘लघुपाराशरी’ के नाम से प्रसिद्ध है। इस ग्रन्थ में विंशोत्तरी दशापद्धति पर आधारित महत्त्वपूर्ण श्लोक दिये गए हैं। लघुपाराशरी में कुल 42 श्लोक हैं जिसमें से संज्ञाध्याय के 5 श्लोकों के अतिरिक्त शेष 37 श्लोकों का आधार महर्षि पराशर विरचित बृहत्पाराशरहोराशास्त्रम् है।
पराशर ऋषि ने दशाफल के लिए तीन घटकों का उल्लेख किया है:
1. ग्रहों के स्वभाववश साधारण फल होते हैं जो ग्रहों के नैसर्गिक स्वभाव और कारकत्वों से प्रभावित होते हैं।
2. ग्रहों के भावस्वामी होने से उनके स्थानादिवश विशिष्ट फल होते हैं अर्थात ग्रह जिन-जिन भावों का स्वामी होता है, उसके विशिष्ट फल देता है। इसी आधार पर फलों की शुभता और अशुभता का निर्णय भी होता है।
3. फलों की मात्रा कितनी होगी, इसका निर्धारण ग्रहों के बलानुसार किया जाता है।
लघुपाराशरी की लोकप्रियता इसीलिए इतनी बढ़ी, क्योंकि यह उपरोक्त तीन बिन्दुओं में से दूसरे बिन्दु पर केन्द्रित है। पहले बिंदु का विवरण तो लगभग सभी सामान्य शास्त्रों में दिया ही गया है। तीसरे बिंदु का महत्त्व भी षड्बल से स्पष्ट हो जाता है जिसका वर्णन भी सामान्यतः सभी शास्त्रों में मिल जाता है। दूसरे बिंदु पर व्याख्या और वैज्ञानिक सूत्रों का लघु रूप में एकत्रीकरण करके प्रस्तुत करना अद्वितीय था। सारावली में केवल भावेश के महत्त्व पर जोर देते हुए कहा है कि बुद्धिमान ज्योतिषी को होराशास्त्र में वर्णित फलादेश का भावाधिपति के आधार पर ही विचार करना चाहिये क्योंकि भावेश के बिना इस फलित में एक भी कदम चलना असंभव है।
50 से अधिक लोक विख्यात पुस्तकों के लेखक डॉ. मनोज कुमार ने दो विषयों इतिहास एवं लोक प्रशासन में एम.ए. तथा तदुपरान्त पीएच. डी. की उपाधि 1995 में प्राप्त की। अपनी विश्वविद्यालयीय शिक्षा पूर्ण करने के उपरान्त इन्होंने करीब एक दशक तक विभिन्न स्थानों पर अध्यापन कार्य किए तथा अच्छे शिक्षक के रूप में ख्याति अर्जित की। 1990 के दशक से ही इनकी अभिरुचि गुप्त विद्याओं एवं अध्यात्म में रही है। इन्होंने विधिवत् ज्योतिष (पाराशरी, जैमिनी एवं कृष्णमूर्ति पद्धति), अङ्क ज्योतिष, वास्तुशास्त्र, हस्तरेखा विज्ञान, पास्ट लाइफ रिग्रेसन, रेकी एवं अन्य आध्यात्मिक उपचारों की पद्धति आदि का गहन एवं विशद् अध्ययन इन विषयों के महानतम् गुरुओं के सान्निध्य में किया है तथा उपाधियां अर्जित की हैं।
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