Pyramid Vastu sirf dhokha
वास्तु एक प्राचीन विज्ञान है। भारत में लगभग सन् 1990 के आसपास वास्तुशास्त्र के प्रति लोगों में पुर्नजागृति आई । इसी दौरान चीन का वास्तुशास्त्र जिसे फेंगशुई कहा जाता है, इसके बारे में भी भारत के लोगों को जानकारी मिली। मीडिया के बढ़ते प्रभाव के कारण तीन चार वर्षों के अंदर ही इन दोनों शास्त्रों का व्यापक प्रचार प्रसार सम्पूर्ण भारत में हुआ। इसी दौर के चलते एक तरफ गुजरात एवं दक्षिण भारत में ध्यान व चिकित्सा के क्षेत्र में पिरामिड का प्रयोग शुरू हो गया, तो दूसरी ओर पिरामिड वास्तु और फेंगशुई के विषय पर किताबें छपकर बाजार में मिलने लगी, साथ ही अखबारों एवं पत्रिकाओं में लगातार लेख भी प्रकाशित होने लगे।
भारत की आम जनता को वास्तु के व्यापक प्रचार प्रसार के साथ-साथ पिरामिड के बारे में जानकारी मिलने लगी और लोग इसकी ओर भी आकर्षित होने लगे। इन परिस्थितियों का फायदा उठाते हुए गुजरात के कुछ विद्वानों ने वास्तु दोष निवारण के लिए पिरामिड का प्रयोग करना शुरू कर दिया जिसे मुख्यतः पायरा वास्तु के नाम से प्रस्तुत किया जाने लगा। भारत के कई विद्वानों ने अपने आपको वास्तु के क्षेत्र में पिरामिड विशेषज्ञ अर्थात् पायराविद् करार कर दिया। आज वास्तु एवं ज्योतिष की कई मासिक पत्रिकाएं पिरामिड वास्तु के प्रचार में लगी हुई है और विभिन्न प्रकार के पिरामिड बेच रही है। कई पिरामिड विशेषज्ञों ने इस विषय पर चमक-दमक से पूर्ण किताबें भी प्रकाशित करवाई हैं जिसमें अपने ढंग से कई तरह के रेखाचित्रों को बनाकर पिरामिड की ऊर्जा के प्रभाव को दर्शाया गया है ।
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