प्रस्तुत ग्रन्थ में ग्रहों का मानव जीवन पर प्रभाव, ग्रहों के प्रभाव को जानने के साधन, ज्योतिष एवं कर्मवाद ज्योतिष एवं आयुर्वेद रोगोत्पति के कारण एवं ज्योतिष शास्त्र में रोग विचार की ऐतिहासिक परम्परा का विवेचन किया गया |
इस ग्रन्थ के नौ अध्याय हैं । प्रथम अध्याय में रोगों की जानकारी के प्रमुख उपकरण योग, उसके भेद एवं मुख्य तत्व तथा रोग विचार के प्रसंग में ग्रह, राशि एवं भावों का परिचय दिया गया है । द्वितीय अध्याय में रोगपरिज्ञान के सिद्धान्त तथा रोगों का वर्गीकरण हैं । तृतीय अध्याय में जन्मजात रोगों का जैसे जन्मान्धता, काणत्व, मूकता चतुर्थ अध्याय में दृष्टनिमित्तजन्य ( आकस्मिक) रोगों का जैसे चेचक हैजा तपेदिक । पंचम अध्याय में अदृष्टिनिमित्तजन्य शारीरिक रोगों का जैसे नेत्र, कर्ण, नासा, दन्त तालु, कण्ठ गल, हृदय नाभि, गुर्दा, शिशन, गुदा आदि के रोगों का, छठवें अध्याय में बात, पित्त कफ आदि विकारजन्य रोगों का, सातवें अध्याय में मानसिक रोगों जैसे उन्माद आदि आठवें अध्याय में ग्रहों की दशा में उत्पन्न होने वाले दोष नौवें अध्याय में ग्रह दशाके अनुसाद साध्य एवं असाध्य रोगों का विवरण दियागया है ।
प्राचीन पुस्तकों को आधार बनाकर लिखी गई यह पुस्तक रोग शान्ति के लिए अतीव उपयोगीसिद्ध होगी ।
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