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Swapna Phaldarpan [Hindi] By Kishanlal Sharma [MP]

Description
क्र. सं.
अध्याय
१. स्वप्नशास्त्र
२. स्वप्न सिद्धि के प्रयोग
३. स्वप्नों के अर्थ
४. स्वप्नों का तात्विक विवेचन
५. भारतीय साहित्य में स्वप्न मीमांसा
६. अग्नि महापुराण में वर्णित शुभ-अशुभ स्वप्न विवेचन
७. दुःस्वप्न उनके फल एवं शांति उपाय
८. कुछ प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्वप्न
६. स्वप्न फल कोष
१. स्वप्न शास्त्र
विनेशं वरदं महेश तनयम् दुर्गा शिवम भारत।
यंदे शंकर शंकर देयं त्रिताप हम । विरोधी भुजंग ध्यास ललित देवं रमा संयुतम्। जीयो मतिरस्तु मे गतिरपि श्री शारदाम्बा कज।।
खन दृष्टि अलौकिक है। इस सृष्टि में बिहार करने वाले स्वप्नों की अलौकिकता के ने मे खते है। स्वन हमेश सुन्दर एवं सुहायने ही ोगे ऐसा नहीं है। स्वप्न जैसा डरावना होता है पैसा ही आनंददायक भी होता है। स्वप्न देखकर मानव यदि आनंदविगोर र नाधने लगता है तो सभी सहम भी जाता है स्वन में पदि उर्वशी अप्सराएँ दिखती है तो शूर्पणखा जैसी डरावनी मत्स्य तथा राक्षसी प्रकृति की स्तियां भी दिखाई देती है स्वष्न में प्रियकर अपनी प्रेयसी को आलिंगन देकर सुख की जाने उखता है तो कई बार कुलीन सी के सहयास के कारण मृत्यु को आलिंगन देने की बारी भी आ जाती है। स्वप्न मानय में वासनामय कथा के कारण अनेक दुर्गुणों की वृद्धि करता है। मानव को नास्तिक एवं कुविचारी बनाने का कार्य भी वो ही करता है। यह है स्वप्न सृष्टि ।
मानवी इन्दिों की चाहा प्रवृत्तिया जय अधेतन हो जाती है और मानव निंदा देवी की गोद में शारीरिक दृष्टि से पहुंच कर स्थिर हो जाती है तब भी उसका अचेतन मन जागता रहता है और वह स्वप्न में रसलीन हो जाता है।
"गते शोके न कर्तव्यो भविष्य नैव चिन्तयेत। वर्तमान कालेन वर्तयन्ति विचक्षणाः।"
इस श्लोक का अर्थ है कि बीते समय के लिए शोक न करे। भविष्य में घटने वाली पटना का भी विचार करे।